November 21, 2024

भूपेन हज़ारिका याद हैं? जिन्होंने हुंकार लगाई थी

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रुचिर गर्ग

” ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूं ? ”

पूरा सुनिए, फिर से सुनिए,फिर फिर सुनिए।

गंगा और समाज के रिश्ते को समझिए,गंगा और इस देश के बीच जिंदगी की कड़ियों को जोड़िए, उन चुनौतियों की शिनाख्त कीजिए जिन्हें महसूस कर भूपेन दा गंगा का आह्वान कर पूछते हैं –

” नैतिकता नष्ट हुई,मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूं ”

गंगा जी और सभ्यता के विकास की कहानियां पढ़िए,गंगा जी के तट पर लिखी किसी कवि की कविता को ढूंढिए,गंगा जी और समाज–संस्कृति को सहेजने वाले यात्रा वृत्तांत पढ़िए, गंगा जी के तट पर घंटों पानी में पैर डाल कर सुकून पाने वाले लोगों की स्मृतियों को टटोलिए , गंगा जी पर आश्रित जन के पसीने और गंगा जल के पवित्र रिश्ते की महक महसूस कीजिए।

गंगा जी को पंडों की नजर से मत देखिए..वो तो चुप हैं और चुप रहेंगे!वो तो आर्यों की प्रभुता के ही वाहक हैं।गंगा जी और मानव सभ्यता को भूपेन दा के इस आह्वान से जानिए –

” इतिहास की पुकार,करे हुंकार
ओ गंगा की धार,निर्बल जन को
सबल–संग्रामी , समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूं ? ”

क्रूज पर शैम्पेन उड़ाने वाले प्रभु समाज के लिए नदियां तो ऐसी ही अश्लील विजयों की प्रतीक हैं , नदियों को रौंदने वाले इस समाज की ही संस्कृति की वाहक सत्ता के लिए भी गंगा जी केवल एक बहता पानी है,लेकिन भूपेन दा के इस गीत के जरिए पूछिए गंगा जी से –

” व्यक्ति रहे व्यक्ति केन्द्रित
सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निष्प्राण समाज को छोड़ती ना क्यूं? ”

ये शुद्धतावाद नहीं है लेकिन जब गंगा जी की सभ्यता की छाती रौंदी जा रही होगी, उस क्रूज पर जाम टकरा रहे होंगे तब भूपेन दा को याद करते हुए गंगा जी से पूछिए –

” गंगे जननी , नव भारत में
भीष्मरूपी सुतसमरजयी जनती नहीं हो क्यूं ? ”

गंगा मां के बेटे वो प्रजा है जो दोनों पार बसती है ।

वो ” अनपढ़ जन अक्षरहिन
अनगीन जन खाद्यविहीन ” गंगा मां के बेटे हैं जो दोनों पार बसते हैं ।

जब लाखों रुपए खर्च कर इस क्रूज पर बैठ शैम्पेन उड़ाते, वहीं पाखाना करते ये लोग इन तटों से गुजरेंगे तब कहीं भूपेन दा पूछ रहे होंगे –

” विस्तार है अपार , प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम
ओ गंगा बहती हो क्यूं ? ”

भूपेन दा के सवाल इस देश के करोड़ों जन के सवाल हैं,हमारे भी हैं।

हमने गंगा जी को जीया है , गंगा जी की पुण्य संस्कृति में अपने कदम डुबो कर हम भी गंगा नहाए हैं । हम भी गंगा जी की बारीक चमकीली बालू से लिपटे लोग हैं । हमने गंगा जी के तट पर मिलने वाले पत्थरों पर इस पवित्र नदी के भावों की थोड़ी सी चित्रकारी की है …और उन्हें पेपरवेट की तरह इस्तेमाल नहीं किया बल्कि हरिद्वार निवासी हमारी अरुणा मौसी ने उन्हें सहेज रक्खा था ।

हमारे लिए भी गंगा जी मान और अपमान का सवाल हैं ।

जिनके लिए नहीं हैं वो फिर लाइन में लगेंगे और गंगा मां के नकली पुत्रों को वोट दे कर आयेंगे ! …और शायद हम फिर पूछेंगे – ” ओ गंगा तुम बहती हो क्यूं ? “

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