“पच्चीकारियों के दरकते अक्स” उपन्यास का लोकार्पण
मुंबई विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका ‘शोधावरी’ के मंच के सौजन्य से प्रधान संपादक डॉ. हूबनाथ पांडेय द्वारा “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” मेरे उपन्यास के “लोकार्पण और परिचर्चा” का आयोजन जे पी नाईक भवन मुंबई विश्वविद्यालय में 22 जनवरी को संपन्न हुआ।
“पच्चीकारियों के दरकते अक्स” मेरे उपन्यास जिसकी प्रतियों के प्रकाशित होने और प्रकाशक के मुंबई आने की जानकारी से उपन्यास के लोकार्पण और परिचर्चा समारोह का होना निश्चित हुआ।
प्रधान संपादक डॉ. हूबनाथ पांडेय ने ‘शोधावरी’ के मंच पर साहित्यिक आयोजन के लिए लेखकों को आमंत्रित करते हुए लेखिका के लिए आशीर्वचन द्वारा अपनी बात रखी।
आयोजन को महत्वपूर्ण और गौरवमयी लोकार्पण समारोह कहते हुए प्रकाशक डॉ. सुधीर शर्मा के वक्तव्य से कार्यक्रम की शुरूआत हुई। उन्होंने कहा “अच्छा लगता है कि मुंबई से दूर रायपुर जैसे शहर में एक प्रकाशन चल रहा हो और मुंबई का लेखक यहाँ से अपनी पुस्तक प्रकाशित करता है। 1995 में ज़ीरो बजट से शुरुआत प्रकाशन आज 700 पुस्तकों और ढाई तीन सौ लेखकों का परिवार है. जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने को-ऑपरेटिव प्रेस सरकारी प्रकाशन संस्थान के रूप में इसे मान्यता दी है। देश विदेश के लेखकों ने यहाँ से पुस्तकें प्रकाशित की। ऐसा ही सौभाग्य रीता दास राम ने दिया। उनकी कहानियों में दम है। कहानियों में आज है।”
“पच्चीकारियों के दरकते अक्स” उपन्यास के शीर्षक पर गौर करने कहते हुए वे उपन्यास के बारे में वे बताते हैं “समाज के परिवेश में रूढ़ हो चुके प्रतिमा बद्ध हो चुके चेहरे दरक रहे हैं।”
प्रख्यात कथाकार डॉ. असग़र वजाहत ने उपन्यास में अपनी लिखी टिप्पणी का जिक्र करते हुए जो उपन्यास में प्रकाशित है, अपने वक्तव्य की शुरूआत की। उन्होंने कहा, “उपन्यास में बदलते हुए सामाजिक परिवेश को गहराई से चित्रित किया गया है. यथार्थ के कई धरातल के भीतर कहानी चलती है। उपन्यास पाठक को लेकर चलता है। उपन्यास जीवन की विषद व्याख्या है।” वे कहते हैं, “लेखिका जो कवयित्री है उसे इसकी जरूरत क्यों पड़ी।” लेखिका का रचनात्मकता के प्रति लगाव व साहस को उन्होंने महत्वपूर्ण बताया।
उन्होंने बताया, “हमारे अच्छे मित्र मंगलेश डबराल जी के माध्यम से पता चला उन्होंने कहा कि ये जिस तरह की कविताएँ लिखती हैं उल्लेखनीय है, महत्वपूर्ण कविताएँ है और मंगलेश डबराल जैसे कवि अगर किसी के बारे में राय दे रहे हैं वो महत्वपूर्ण है नेक है उसकी वैल्यू की जानी चाहिए।” आगे वे कहते हैं, “कविता के क्षेत्र में वे स्थापित है उपन्यास में भी इनको मान्यता प्राप्त होगी।”
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ रतन कुमार पांडेय ने बताया “‘अनभै’ पत्रिका के 2004 के पहले अंक में रीता की कविताओं को स्थान दिया था और अब एक अच्छी कवयित्री के रूप में पूरे देश में इनकी पहचान बनी है” और सभी विद्यार्थियों को सतत आगे बढ़ते रहने का आशीर्वाद देते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य पूरा किया।
वरिष्ठ कथाकार सूरज प्रकाश ने उपन्यास को पठनीय रूचिकर कहा। उपन्यास में सभी अंतर जातीय विवाह का अच्छा प्रयोग बताया।
लेस्बियन के मुद्दे पर कुछ अतिरिक्त कहने की जरूरत का संज्ञान लेते हुए किन्नर बच्चे को माता पिता द्वारा पालने के फैसले को सही कहा।
डॉ मृगेंद्र राय जी ने प्रकाशन को उत्कृष्ट कह प्रकाशक को बधाई देते हुए लेखिका का उपन्यास लेखन के लिए अभिनंदन करते हुए उपन्यास की विस्तृत सिलसिलेवार जानकारी दी।
डॉ. रवीन्द्र कात्यायन ने उपन्यास को पठनीय कहा और बताया कि विसंगतियां, नवाचार, किन्नर विमर्श, लिव इन रिलेशनशिप, समलैंगिकता ये सारे मुद्दों के साथ एक लड़की के अपने संबंधों को तलाश करने की विजय यात्रा है जिसमें नई पीढ़ी की भाषा है।
अवधेश राय ‘रमेश कुंतल’ के शब्दों को उद्धत करते हुए कहते हैं “रचनाएं लेखक के मानस पुत्र एवं पुत्रियां ही है” एवं लेखन के दायित्व को गंभीरपूर्ण दायित्व बताया। अजय शुक्ला ने कविता द्वारा शुभकामनाएं दी।
वर्धा विश्व विद्यालय के डीन हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अवधेश कुमार, आगरा से राज गोपाल सिंह वर्मा, लेखक व समीक्षक भारतेंदु मिश्र जी उपस्थिति महत्वपूर्ण थी।
मधु जी, विनोद दास जी, संजय भिसे जी, राजीव रोहित जी, आभा बोधिसत्व जी, अनुराधा सिंह जी की उपस्थिति से प्रसन्नता हुई।
विश्वविद्यालय के पीएचडी के साथी, एम.ए, लॉ एवं अन्य डिपार्टमेंट के विद्यार्थियों के सहयोग और स्नेह पूर्ण उपस्थिति ने हार्दिक खुशी दी।
मुंबई विश्वविद्यालय की अंग्रेजी की प्रोफेसर शोधावरी की संपादक डॉ. भाग्य श्री वर्मा जी ने “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” उपन्यास के शीर्षक की अंग्रेजी में अर्थ पूर्ण टिप्पणी करते हुए गरिमामय मंचासीन अतिथियों का आभार व्यक्त कर कार्यक्रम का समापन किया।
डॉ. अंजू गुप्ता ने मंच का सफल संचालन किया।
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🙏🙏🌹🌹 शोधावरी मंच, मंचासीन और उपस्थित विद्वजनों का सादर धन्यवाद व आभार व्यक्त करती हूँ।
मंगलेश डबराल सर की स्मृति को सादर नमन करती हूँ 🙏🙏🌹🌹