कहानी – बडे घर वाले
बहुत खुश थे श्यामलाल जी आज . उनके जीवन का सबसे बडा सपना पुरा जो हुआ था. स्कुल से आते आते उन्हे रास्ते में ही खबर लग गई थी कि उनके इकलोते बेटे दिपक ने एम बी बी एस का फायनल इयर भी सफलता से पास कर लिया है अब उसे डाक्टर की डिग्री मिलने वाली थी .
उनका बेटा डाक्टर बन गया है इस एहसास ने उनके पैरों में पंख लगा दिये थे बिना लाज शरम के देखने वालों की चिन्ता किये बिना तेजी से दोडते हुए घर पहुंचे तो देखा घर के आंगन में मोहल्ले वालों की भीड थी . बेटा दिपक उसके तीन चार दोस्त और पत्नी गीता बडे प्रफुल्लित नजर आ रहे थे. उन्हे आते देख दिपक ने पिता के पैर छुए .
श्यामलालजी उसके सर पे हाथ रखते हुए भावुक हो गए उनकी आंखों में आंसु छलक पडे पत्नि गीता भी अत्यंत हर्ष के साथ चहकते हुए पति से लिपट गई .
बधाई हो तुम्हारा बेटा डाक्टर बन गया तुम्हारी मेहनत सफल हुई .
मेहनत सिर्फ मेरी नहीं गीता तुम्हारी और दिपक की भी तो है .
वो तो है स्यामलाल , लेकिन तुम एसा जुनुन नहीं पालते तो यह सब संभव नहीं था . पडोस के काकाजी ने बीच में दखल देते हुए कहा जो श्यामलाल के पीछे पीछे ही घर में आ रहे थे . सब आपका आशिर्वाद है काकाजी . श्यामलाल ने बुजुर्ग काकाजी के हाथ जोडे . काकाजी जो श्यामलाल के बरसों के पडोसी थे इनके घर की सारी खबरें रखते थे वो भी आज बहुत खुश थे .
में पिछले पांच सात साल से देख रहा हुं श्यामलाल अपने बेटे को डाक्टर बनाने के लिये तुमने कितने जतन किये . इसे पढाने में इसकी ट्युशन में इसकी फीस और दुसरे खर्चो की व्यवस्था में तुमने अपना हर दिन हर महीना और हर साल इसी जुगत में लगा दिया कि बेटे को कोइ परेशानी ना हो तुम धन्य हो श्यामलाल आज भगवान ने तुम्हे तुम्हारे त्याग का पुरस्कार दिया है काकाजी ने आर्शिवाद की मुद्रा में इतनी लम्बी बात कह डाली . तभी गीता अन्दर से मिठाई लेकर आइ और सबको खिलाने लगी .
दिपक अपने दोस्तो को यह खुश खबर देने चला गया और श्यामलाल अपनी पत्नि के साथ घर में पलंग पर बडी आत्म मुग्धता से बैठ गये उनकी प्रफुल्लता दब नहीं पा रही थी . हर्षातिरेक से उनका गला भर्रा रहा था . आंखे बार बार नम हो रही थी . अब हमारे दुख के दिन बित गये गीता अब हमारा बेटा खुब कमायेगा और बैठे बैठे खिलायेगा . श्यामलाल जी ने गीता की आंखों में झांका , वहां भी कई सपने झीलमिला रहे थे सच कह रहे हो तुम अब हमारी बरसों की कर्जे की जिन्दगी , पैसों का अभाव , हर चीज में कटौती इन सब बातों से छुटकारा मिल जायेगा कहते कहते गीता रो पडी . उसकी आंखो से आंसुओ की धार बहने लगी लेकिन ये आंसु दुख के नहीं अपितु एक संतोष के थे . किसी महायज्ञ की पुर्णाहुति से प्राप्त होने वाली संतुष्टि के .यह महायज्ञ ही तो था जो पिछले पांच सात सालों से चल रहा था .
गीता ने अपने पति के रूग्ण होते शरीर पर नजर डाली . उसे अभावों में बिता हर दिन हर अवसर याद आया , जब इस त्यागी पिता ने अपने बेटे की पढाई की खातिर उसकी महंगी फीस और किताबों के लिये अपने सारे शोक को भुला दिया था उनके जीवन में खाने पीने पहनने ओढने बल्कि हर काम में मितव्ययिता पहली शर्त के रूप में होती थी .
और एसा ना करते तो सह संभव भी कैसे था ? एक स्कुल मास्टर का बेटा डाक्टरी की पढाई कर ले ?
गीता को याद आया कई दिवाली दशहरा या रिश्तेदारों के विवाह कार्यक्रम आने पर दोनो पति पत्नि रात को ही मिल बैठ कर यह तय कर लेते थे कि इन मोकों पर नये कपडे लाने की बजाय पुराने कपडों से ही काम चल जायेगा ताकि दिपक की पढाई के खर्च में कोइ कमी ना आने पाये . और यही वजह थी कि मजबुरी में अपनाइ गइ मितव्ययिता की आदत उनकी जीवन पद्धति बन चुकी थी . दिपक ने भी माता पिता की भावना के अनुरूप ही सादगी से रहकर मेहनत करते हुए पढाइ की और मां बाप के सपनों को साकार किया .
शीघ्र ही दिपक ने सरकारी नौकरी के प्रयास शुरू कर दिये इसी के साथ प्रायव्हेट प्रेक्टिस भी शुरू कर दी . कुछ ही दिनों में दिपक के प्रयास रंग लाये और उसकी सरकारी नौकरी लग गइ . इसी बिच उसके विवाह के चर्चे भी प्रारम्भ हो गये . श्यामलाल जी के रिश्तेदारों में दिपक के रिश्ते के लिये होड सी लग रही थी श्यामलाल जी बहुत रोमाचिंत थे समाज में अपनी पोजीशन बढती जानकर . लेकिन शादी की बातें चलते ही ना जाने क्यों दिपक कुछ विचलित हो जाता था .
फिर एक दिन मां के आग्रह पर दिपक ने अपनी परेशानी बता ही दी . परेशानी का कारण थी उसके कालेज की साथी एक लडकी जिसके साथ गत तीन चार सालों से दिपक की आत्मियता इतनी बढ चुकी थी कि वो जिसे कहते हैं प्यार , जीवन भर साथ निभाने के कस्में वादे सभी हो चुके थे . मिनी नाम की यह लडकी एक बहुत बडे अधिकारी की बेटी थी और यही बात दिपक के लिये विचारणीय थी कि क्या वो इस बडे घर की बेटी को निभा पायेगा .
गीता भी पहले तो खुश हुइ यह सुन कर कि उसके यहां डाक्टर बहु भी आ सकती है .लेकिन तत्काल ही वह भी संकोच में पड गइ . क्या वे लोग हमारा घर देख कर हमारी गरीबी के बारे में नहीं जान जायेंगे , और क्या उन बंगले वाले बडे लोगों को हमसे रिश्ता करना मजुंर होगा ? मां की शंका देख दिपक और भी चिन्तित हो गया . यही तो डर है मां . मिनी को तो मैं अच्छी तरह से जानता हुं वो तो दिल की बहुत अच्छी है वह इन बातों को बिलकुल नहीं मानती लेकिन उसके माता पिता का पता नहीं वो क्या सोचते हैं .
फिर क्या होगा ?
वैसे मैने मिनी के पापा को हमारे घर के बारे में सब कुछ सच नहीं बताया है मां .
क्या मतलब मां अचानक चौंकी । हां मां मैने उन्हे पापा के बारे में बताया है कि वे एक बडे बिजनसमेन है . लेकिन यह झुठ आगे कैसे चलेगा बेटा ? बाद में सब ठीक हो जायेगा मां बस आप दोनो अपने रहने का ढंग थोडा चेंज कर लो बाकि मैं सब सम्हाल लुंगा .
क्या ? क्या कह रहा है तु ? क्या हमारा रहने का ढंग गलत है ?
नहीं मां मेरा मतलब है थोडा रइसों जैसे रहो बडे लोगों जैसे और जब में उन्हे मिलाने लाउंगा तब जरा शानदार कपडों में रहना बस .
मुझे तेरी यह बात समझ में नही आइ . गीता ने कुछ संशय से कहा
तुम बस पापा को राजी कर लो बाकि मै सब सम्हाल लुंगा .
और बेटे की खुशियों की खातिर उसकी इच्छापुर्ति में सहायता करने को गीता ने अपने पडोसी काकाजी का सहारा लिया उन्हे सारी बातें बता कर श्यामलाल के दिमाग में यह बात जंचाइ कि आजकल डाक्टर लडके डाक्टर लडकियों से ही शादी करना पसन्द करते हैं . रात को जब गीता ने पति से चर्चा की तो वह बहुत खुश हुइ क्योंकि श्यामलाल जी भी इस बात से बहुत खुश थे कि उनकी बहु भी एक डाक्टर हो सकती है . बस उन्हं संकोच समाज का और रिश्तेदारों का था कि सब लोग उलाहना देंगे कि बेटा डाक्टर क्या बना जात समाज को छोडकर गैर समाज की बहु लाने लगे . लेकिन गीता ने बेटे की इच्छा और सब उंच नीच समझा कर उनका यह संकोच भी दुर कर दिया .
जब गीता ने बेटे को बताया कि उसके पापा भी राजी हैं इस शादी के लिये तो दिपक बहुत खुश हुआ . दोपहर में जब श्यामलाल जी ने दिपक से सब विस्तार से पुछा तो दिपक ने कुछ संकोच करते हुए सारी बातें बता दी . आने वाली बहु एक बहुत बडे अधिकारी की बेटी है यह बात श्यामलाल जी के गले में फांस की तरह चुभी . तुने उन्हे हमारे घर के बारे में तो सब बता दिया है ना ?
क्या पापा क्या बताना था ? दिपक के दिल की धडकने कुछ तेज होने लगी .
यही कि हमारा घर एक साधारण सा है और में कैवल एक स्कुल अध्यापक हुं ।
नहीं पापा ये सब बताने की जरूरत नहीं पडी . लैकिन उन्होने पुछा तो होगा कुछ मेरे बारे में ? पिता का संशय जागा ! हम उन्हे बाद में बता देंगे बस जब वे लोग आयें तब आप थोडा ध्यान रख लेना . ध्यान ? ध्यान किस बात का ?
बस थोडा सा ………..दिपक कुछ कह नहीं पाया तभी वहां आई गीता ने स्थिति स्पष्ट की तुम्हारे लाडले ने उनको यह बताया है कि तुम एक बडे व्यापारी हो इसलिये जब वे मिलने आयें तब ………..आगे की बात गीता भी पुरी नहीं कर पाई .
यानी मुझे उनके आगे झुठ बोलना है कि मैं एक बडा व्यापारी हुं ? श्यामलाल जी का स्वर एकदम बदलने लगा चेहरे की मांसपेशीयों में तनाव आने लगा .
आपको कुछ नहीं बोलना है पापा मैं सब सम्हाल लुंगा बस आप थोडा सा अपना स्टैन्डर्ड…………क्या ? दिपक की बात काटते हुए श्यामलाल जी बोले मैं अपना स्टैन्डर्ड सुधार लुं ? पापा मेरा ये मतलब नहीं था मैं कह रहा था कि आप दोनो अपने कपडों का थोडा ध्यान रख लेते बस बाकि सब चल जाता . ओह तो तुझे अब हमारे सादे सस्ते कपडों को देख कर शरम आने लगी ? श्यामलाल जी का आक्रोशयुक्त स्वर उंचा उठता चला गया .
दिपक परेशान होने लगा वो समझ रहा था कि बात गलत दिशा में बढ रही है मगर उसे मातापिता को अपनी बात सही ढंग से कह पाने का तरिका नहीं सुझ रहा था ।
प्लीज पापाजी मेरा ये मतलब नहीं था और फिर अच्छे कपडे पहनने में क्या बुराई है . सस्ते कपडे पहनने से आदमी प्रभावी नही लगता .
अच्छा तो उस लडकी के पिता रइस हैं इसलिये उनसे मिलाने में हमारे कपडों के कारण तुझे शरम आ रही है . लेकिन यह मत भुलना बेटा कि ये सस्ते कपडे ही हैं जिनके कारण तु अपनी डाक्टरी की पढाइ पुरी कर सका यदि मै और तेरी मां भी ये महंगे कपडे पहनते एशोआराम से रहते तो तेरी पढाइ का खर्चा निकाल पाना असंभव ही होता .
प्लीज पापा …. दिपक ने हाथ जोड कर श्यामलालजी को चुप करना चाहा तभी गीता ने आगे बढ कर पति को समझाने की कोशीस की लैकिन श्यामलालजी आक्रोश , अफसोस , तनाव की मुद्रा में अपना सिर पकडते हुए बाहर चले गए . दिपक मायुसी में वहीं खडा था दिपक की बातों से गीता भी खिन्न थी लैकिन मां थी उसने दिपक को धीरज बंधाया . में उन्हे समझा लुंगी तु बता वो कब आ रहे हैं गीता ने ठण्डे स्वर में पुछा ।
मैं परसों का कह के आया हुं मां मगर अब मैं डर रहा हुं ना जाने क्या होगा ?
मै रात को तेरे पापा से बात करूंगी गीता ने कहा और रात को श्यामलाल को समझाते हुए कुछ कहना शुरू ही किया था कि श्यामलालजी फफक पडे भर्राये गले से वे बोलते ही चले गये . मैं जरा भी झुठ नहीं बोल पाउंगा गीता मुझे गर्व है कि मैने साधारण स्कुल मास्टर होते हुए इतने बडे लक्ष्य को पाया है . इस सपने को अपनी सादगी और मितव्ययिता के बल पर सच किया है . आज वही सादगी और मितव्ययिता को सस्तापन कह कर अपमान हो रहा है मैं कैसे सहन कर सकुंगा गीता कि मेरा परिश्रम और कडे प्रयास ही किसी के लिये शर्मिन्दगी का रूप ले ले .
गीता ने विचलित श्यामलाल जी को समझाया कि दिपक ने इतना कुछ नहीं सोचा होगा वो तो नादान है अपना बेटा है उसके कहे पर दुखी मत होओ .
ठीक है मै मान लेता हुं कि दिपक का मन एसा नहीं है लेकिन में उस दिन घर पर नहीं रहुंगा वो लोग आकर चले जायेंगे तभी मैं वापस आउंगा । श्यामलालजी ने दो टुक अपना निर्णय सुना दिया . यद्यपि गीता ने उन्हे बहुत समझाया लेकिन वे अडिग रहे . और जब मिनी के पिता घोष बाबु अपनी लकदक कार से दिपक के घर आये तब सचमुच में श्यामलालजी घर पर नहीं थे . गीता ने उनकी आवभगत की साथ में आइ मिनी को भी गले से लगाया बडे संकोच के साथ बताया कि दिपक के पापा को अचानक बाहर जाना पडा . घोष बाबु बहुत बडे अधिकारी थे लेकिन बहुत सौम्य और सादगीपुर्ण व्यक्तित्व वाले लग रहे थे . कुशल तो वो थे ही । पांच मिनिट बाद ही बोले आप सब लोग बाते करो में जरा आता हुं . यह कहते हुए बाहर चले गये .
दिपक और गीता दोनो ही संशय में थे कि कहां गये होंगे शायद उन्हे हमारा घर बहुत साधारण लगा हो . मिनी से दोनो की चर्चा जारी थी लेकिन उनके दिमाग चिंतित थे . कुछ ही देर में घोष बाबु श्यामलालजी के साथ वापस घर में आ रहे थे . अरे आप इनके साथ ? गीता का संकोच भरा स्वर बडी मुश्किल से निकल पाया .
मैं तो स्कुल में ही बैठा था अचानक ये सज्जन .. धोष बाबु वहां आ गये एसे बात करने लगे जैसे मुझे बरसों से जानते हों और उठाकर यहां ले आये . श्यामलालजी ने सहजता से कह डाला . लैकिन पापा ……..दिपक को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या कहे क्या ना कहे उसने क्रमषःघोष बाबु और अपने पापा की ओर देखा .
बेटे तुम्हे शरमाने की या कुछ छिपाने की जरूरत नहीं है मुझे सब मालुम है .
क्या मालुम है आपको ? दिपक ने बुझे स्वर में पुछा
यही कि श्यामलालजी कितने महान इन्सान हैं मैरी इतनी उंची नौकरी होते हुए भी मुझे मिनी को डाक्टर बनाने में पसीना आ गया तो श्यामलालजी ने कितनी त्याग तपंस्या की होगी दिपक को डाक्टर बनाने में ?
तभी श्यामलालजी ने दोनो हाथ जोडते हुए घोष बाबु की ओर देखा और बोले घोष बाबु मेरा तो जो कुछ भी हे सब आपके सामने है . आप लोग बडे घर वाले हैं हम लोग तो बहुत कम खर्च में ………..लैकिन घोष बाबु ने उनकी बात काट दी आप कुछ ना बोलें मुझे सब पता है आपके बारे में . मैने आपके पडोसी काकाजी से सारी जानकारी ले रखी है कोई भी पिता अपनी बेटी का रिश्ता आंख बंद कर नहीं करता और आप जो ये हमको बडे घर वाले कह रहे हैं ना श्यामलालजी ! तो मेरा ये मानना है कि बडे घर वाले भी वही इन्सान होते हैं . बडे घर में रहने से वे बडे नहीं हो जाते . मगर हां कई बार छोटे घर वालों में जरूर बहुत बडे इन्सान भी मिल जाते हैं
लेकिन पापा मैने आपसे झुठ बोला मुझे माफ कर दो दिपक ने घोष बाबु की ओर शर्मीन्दगी से देखा .
माफी तुम अपने पिता से मांगो बेटा तुम उनकी महानता के बारे में संशय में थे . एसा पिता जो अपने बेटे के भविष्य संवारने के लिये खुद का वर्तमान इतनी कठोरता से बिताये मुश्किल से ही मिलता है . मैं आपकी सादगी और महानता को प्रणाम करता हुं श्यामलालजी और मेरी बेटी को स्वीकार करने की प्रार्थना करता हुं .
घोष बाबु के इतने विनम्र वचनों को सुन कर श्यामलालजी द्रवित हो गये . महान तो आप हैं घोष बाबु जो हमारी सादगी और दारिद्र को इतनी सहजता से स्वीकार कर रहे हैं . मिनी को अपनी बहु बनाकर मुझे बहुत खुशी होगी . श्यामलालजी ने पैरों में झुके मिनी और दिपक को आर्शिवाद दिया . दिपक फुट फुट कर रो रहा था . पापा मैंने कितना दिल दुखाया है आपका . मैं कितना बुरा हुं . श्यामलालजी ने दिपक को गले से लगा लिया बेटा तु बुरा नहीं नादान है याद रखना हर बडी से बडी उपलब्धी के लिये किसी ना किसी को तकलीफ उठाना ही पडती है , त्याग करना ही पडता है और हमें उस त्याग का सम्मान करना चाहिये .
गीता की आंखो से यह सब देख देख कर अविरल अश्रुधार बह रही थी उसे आज सब कुछ मिल गया था . पढी लिखी डाक्टर बहु इतने अच्छे रिश्तेदार और साथ में पति के अमुल्य त्याग का उचित सम्मान भी .
समाप्त
महेश शर्मा
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