आज के कवि- नीर कुमार निर्मोही
तुम तो हसीं ख्वाब हो,
जो देखा है मैंने जागी आँखों से
तुम तो वो माहताब हो,
जो बिखेरता है प्रेम-रूपी चाँदनी
तुम तो वो आफताब हो,
जो रोशन करता है मेरे ग़मे-शाम
तुम तो ऐसी शराब हो,
जो नशे-मन रखेगी मुझे ता-उम्र
तुम तो ऐसा गुलाब हो,
जो महका रहा है मेरे जीवन को
तुम तो मोती नायाब हो,
जो छुपा रखा है मैंने दिल में कहीं
तुम तो कोई जवाब हो,
जो सुलझाता है मेरी हर उलझन
तुम तो ऐसी किताब हो,
जो समेटे हुए है अपने में यादें कई
तुम तो सारा हिसाब हो,
जो दी हैं तुमने खुशियाँ और ग़म।
नीर कुमार ‘निर्मोही’