प्रेम गीतों के गहन साधक आनंद बक्शी
किताब समीक्षा
0 रमेश कुमार ‘रिपु’
अच्छे नग्में लिखने का कोई मौसम नहीं होता। कोरे कागज पर जज्बात के उतर जाने की अलग से रात नहीं होती। दिल को मुहब्बत से बातें करने के लिए कैंडल डिनर की टेबल होना जरूरी नहीं है। बस कोई थीम,बात,झलक या फिर दिल को छू लेने वाली कोई अदा हो, उसे नग्में के सांचे में ढाल देने में माहिर थे आनंद बक्शी। वे प्रेम गीतों के गहन साधक थे। वे भावनाओं के जादूगर थे। तभी तो उनके नग़्में आज भी जब कहीं बजते हैं,तो लोग ठहर जाते हैं। उनके लब गुनगुनाने लगते हैं। मेरा जीवन कोरा कागज,कोरा ही रह गया,डफली वाले डफली बजा,तेरे मेरे बीच में कैसा है बंधन अंजाना,घर आ जा परदेसी तेरा देश बुलाए। ये ऐसे नग्में हैं जो आनंद बक्शी को फिल्म फेयर पुरस्कार दिलाए। और लोगों के प्यार से उनकी झोली भर गयी ।
आनंद बक्शी फौजी थे। वे गायक बनने की चाह लिए मुंबई गए। कइयों को बताया कि वे गीत,कविताएं करते हैं। मगर,तरजीह नहीं मिली। दरअसल, उनका इस्तकबाल करने वाला वक्त कहीं ठिठका था। मुंबई दो बार खुद आगे बढ़कर उनका इस्तकबाल नहीं किया। लेकिन उनकी भी जिद थी,एक दिन मुंबई ही नहीं गांव के कोने में रहने वाला फकीर जहां बिजली नहीं जाती है,वो भी उनके लिखे नग्में गायेगा। और ऐसा ही हुआ। सावन का महीना,पवन करे सोर..। इस गाने में रेल्वे स्टेशन के आखिरी छोर पर एक फकीर को जब गाते आनंद बक्शी ने देखे,तब उन्हें पहली बार लगा कि वो कामयाब गीतकार बन गए हैं। उनका गाना किसी की रोटी का जरिया भी है।
आनंद बक्शी के गाने का दीवाना आज भी जमाना है। अपनी महबूबा से प्यार करने वाला इससे बड़ी उपमा नहीं दे सकता,चांद सी मेरी महबूबा हो,ऐसा मैंने कब सोचा था। राजेश खन्ना के स्टारडम का रास्ता तैयार हुआ आनंद बक्शी के लिखे गाने से। सन् 1969 आराधना फिल्म आई। इसके सारे गाने हिट हुए। रूप तेरा मस्ताना,प्यार मेरा दीवाना। एक गीत आनंद बक्शी ने दस मिनट में लिखा था। वो भी खार स्टेशन से पान खाकर एक दुकान से लौट रहे थे। तभी एक लड़की सामने से गुजरी। हरी मेहरा ने कहा,वाह क्या रूप पाया है। आनंद बक्शी ने सातांक्रूज में एक गुलमोहर के पेड़ के नीचे गाड़ी रोक दी। हरि से कहा,दस मिनट तक एकदम चुप,कुछ बोलना नहीं। और एक ऐसा नग्मा लिख दिया जो आज भी जवां मन के लबों पर गूंजता है।
आनंद बक्शी ने लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के साथ करीब 303 फिल्मों में साथ काम किया और एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए। वहीं 95 संगीतकारों के साथ काम किया। राहुल देव बर्मन के साथ 99 फिल्में की। कल्याण जी आनंद जी के साथ 34 फिल्मों के गाने लिखे।
मेरे महबूब कयामत होगी,परदेसियों से अंखिया न मिलाना,एक था गुल और एक थी बुलबुल,ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे,चांद सी मेरी महबूबा होगी,बहारों मेरा चमन लूटकर,आया है मुझे फिर याद वो जालिम,खत लिख दे संवरिया,मुबारक हो समां ये सुहाना, बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया,दम मारो दम, जब हम जवां होंगे,क्या यही प्यार है,मैं शायर तो नहीं, सोलह बरस की बाली उमर को सलाम,जादू तेरी नजर,लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है,जैसे सैकड़ों सदाबार नग्में आनंद बक्शी ने लिख कर उन लोगों की बोलती बंद कर दी,जो उन्हें तुकबंदी वाला गीतकार कहते थे।
एक दौर था,जब यह कहा जाता है यदि हिन्दी गाने रेडियो पर सुनने वाला आनंद बक्शी को नहीं जानता तो जाहिर है, कि वो हिन्दी सिनेमा से नावाकिफ है। आनंद बक्शी ने उर्दू शायर की इमेज को तोड़ा। चूंकि वे फौजी थे। फौजी की जो दिलदारी होती है,वो पूरी तरह बक्शी की शख्सियत में थी। बक्शी जी सन् 1956 से 2002 तक फिल्मों के गाने लिखे। वे करीब 42 दफा फिल्म फेयर का पुरस्कार पाए।
कामयाबी पर आपको फूलना नहीं चाहिए। अगर आप एक रेस जीत गए हैं तो कोई गारंटी नहीं है,कि अगली बार भी आप रेस जीत ही जाएं। मुमकिन है,अगली रेस के लिए आपको ज्यादा कोशिश करनी पड़े। ऐसी सोच रखने वाले आनंद बक्शी जी की जीवन के चित्रों से रूबरू होने के लिए उनकी जीवनी और उनके नग्मों के लिए पढ़े ‘‘नग्में किस्से बातें यादें।’’ इस किताब के लेखक राकेश आनदं बक्शी हैं। और अनुवाद युनूस खान ने किया है।
लेखक -राकेश आनंद बक्शी
कीमत – 450 रुपए
प्रकाशक -अद्विक पब्लिकेशन प्रा.लि.