November 22, 2024

सरन घई, संस्थापक-अध्यक्ष, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा।

(एकांकी)
पति – सुनो, आज तो कमाल ही हो गया।
पत्नी – क्या हुआ?
पति- कमाल, कमाल और धमाल, बेमिसाल।
पत्नी – यह सब तो हमेशा होता है, आज क्या हुआ?
पति – आज मैंने कवि सम्मेलन में बहुत दिनों बाद देश भक्ति पर कविता सुनाई।
पत्नी – कौन सी कविता?
पति – वही ’सुनहरा भारत’।
पत्नी – वो कविता तो हर बार पसंद की जाती है।
पति – हाँ, पूछो मत कितनी तालियां बजीं, कितनी बार जयकार हुआ।
पत्नी – अरे वाह।
पति – बहुत से कवियों ने मुझे अपनी पुस्तकें भेंट की, अपने हस्ताक्षर के साथ।
पत्नी – और सम्मान स्वरूप पैसे भी दिये?
पति – सबसे बड़ी बात तो यह रही कि कवि सम्मेलन में महकवि माधव जी भी पधारे थे। मैंने उनके पांव छूने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे आगे बढ़कर गले से लगा लिया। पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा।
पत्नी – कुछ पैसे भी मिले?
पति – क्या पैसे-पैसे कर रही हो। तुम्हारे पति की इतनी तारीफ़ हुई वह कोई बात नहीं।
पत्नी – सुनो, सुबह मकान मालिक आया था, आपको पूछ रहा था।
पति – तुम्हें तो रंग में भंग करने की पुरानी आदत है। सुनो, मुझे लगता है अगले वर्ष का ’कवि शिरोमणी सम्मान’ मुझे ही मिलने वाला है। कुछ कवि मित्रों को चाय पर बुलाना होगा ताकि वो मेरे नाम का अनुमोदन कर दें। अब कुछ तो करना ही होता है न इतना बड़ा सम्मान पाने के लिये।
पत्नी – क्या-क्या मिलता है इस सम्मान में?
पति – सम्मान-पत्र, एक शाल, एक नारियल,….. और तो और, सभी उपस्थित कविजन गले में माला पहनाते हैं, मुख्य अतिथि और कार्यक्रम अध्यक्ष भी।
पत्नी – पैसे भी मिलते हैं?
पति – अरे ये बहुत बड़ा सम्मान है, हर कोई इसी सम्मान की बात करता है।
पत्नी – सुनो, सुबह दूध वाला कह रहा था कि दो महीने हो गये, दूध का हिसाब चुकता नहीं किया तो वह दूध देना बंद कर देगा।
पति – उसे मेरे आज के सम्मान की बात बताना, खुश हो जायेगा कि कितने बड़े कवि के घर दूध देता है।
पत्नी – दूध वाले को तो मैं समझा दूंगी लेकिन आपके लाड़ले की स्कूल की फ़ीस कहाँ से आयेगी। बच्चे को घर बैठाना है क्या?
पति – एक बार मेरी कविताओं की किताब छप जाये तो इतना पैसा आयेगा कि सारी कमी पूरी हो जायेगी और तुम्हें भी एक नयी साड़ी मिल जायेगी।
पत्नी – सुनो, सुमन, अपनी बेटी जवान हो रही है। मोहल्ले के लड़कों को उसकी ओर ताकते मैंने देखा है। उसकी शादी की बात कहीं न कहीं तो अब चलानी ही होगी। कविता में बिना दहेज वाले लड़के मिल जाते हैं लेकिन असल जिंदगी में नहीं।
पति- मेरी किताब बिक जाये तो उसकी शादी का खर्च भी निकल आयेगा। लेकिन सुनो, क्यों न गांव वाली जमीन बेचदें?
पत्नी – जमीन पर पहले से जो उधार ले रखा है, उसको निकालकर बाकी क्या बचेगा जिससे तुम सारे अरमान, सारी जरूरतें पूरी कर लोगे?
पति – तो तुम्हीं बताओ, क्या करें?
पत्नी – सुनो, एक कविता मैंने भी लिखी है, पहली बार। आपको अच्छी लगे तो अच्छा, नहीं अच्छी लगे तो और भी अच्छा …. सुनो,

कविताएं लिखने-पढ़ने में मन तो रुचता है,
कविताएं लिखने से लेकिन पेट नहीं भरता है।
कविता पर ताली बजने से शान तो बढ़ती है,
ताली बजने से घर का पर रेंट नहीं चुकता है।
कवि-सम्मेलन में पीने को चाय तो मिलती है,
घर की चाय में लेकिन कवि जी, दूध नहीं पड़ता है।
कविताएं मन के कवि को उत्साह तो देती हैं,
लेकिन कविता से जमीन का ब्याज नहीं चुकता है।
कविता सपनों के सागर में लहर तो लाती है,
लेकिन कविता से बेटी का ब्याह नहीं रुकता है।
कविता से कवि-सम्मेलन का संसार तो चलता है,
लेकिन कविता से कविवर, परिवार नहीं चलता है।

मेरे कवि मित्रों, इस बारे में आप भी सोचिये – सरन घई

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