व्यंग्य- चाय का रंग गेहुआ
सुनो जी ! वो रास्ते में ठाकुर पैलेस पड़ता है ना ज़रा वहां गाड़ी रोकना भूख लगी है वहां कुछ चाय नाश्ता करते हुए जाएंगे(कार की फ्रंट सीट पर बैठी हुई श्रीमती जी ने इतराते हुए अपने पतिदेव से कहा) और वैसे भी वहां चाय पानी में कोई ठिकाना नहीं था। पता नहीं किस बात का खुन्नस मन में लिए श्रीमती ठाकुर झुंझला रही थी। पतिदेव ने एक बेचारापन सा जवाब देते हुए कहा लड़की पसंद नहीं आई तो उसका गुस्सा चाय पानी पर क्यों दिखा रही हो, बेचारे लोग अपनी हैसियत के हिसाब से ठीक ही इंतजाम किए थे। आप चुप रहो जी (श्रीमती जी ने थोड़ी आवाज तेज कर दी ),पता नहीं आपके मामा जी ने क्या देखा था उस लड़की में। जब से पीछे पड़े थे हमारे कि, जा कर देख लो लड़की अच्छी है l क्या खाक अच्छी है? मुझे तो देखते ही ऐसे लगा कि आज का तो दिन ही खराब है। मेरा मन जलने के साथ-साथ कार के पेट्रोल जलने का खर्चा भी बेकार हो गया।
श्रीमती ठाकुर का मन कुंठित हो होकर जल रहा था और साथ में उस लड़की का सांवलापन जिसको वह अपने शब्दों में काली कलूटी कह कर संबोधित कर रही थी बार-बार अपने लड़की देखने जाने वाले प्लानिंग पर अपने पतिदेव को कोस रही थी। चलो शकल सूरत जैसी भी है मुझे तो लगा कि खाना -पीना बनाने भी नहीं आता है उस लड़की को। देखा नहीं आपने ,उसकी मां बार-बार कह रही थी चाय तो हमारी कीर्ति बेटी ने बनाया है। ऐसी भी कोई चाय होती है क्या? काली -काली चाय, ढंग से दूध भी नहीं लगा था उसमें।
सुनो जी मैं अपने शुभम के लिए लाखों में एक लड़की ढूंढ कर लाऊंगी। पढ़े-लिखे (बेरोजगार इंजीनियर) बेटे के ओहदे पर घमंड करती श्रीमती ठाकुर ना जाने ऐसी कितनी लड़कियों को रिजेक्ट कर चुकी थी। जब भी कोई रिश्तेदार शादी के लिए लड़की बताते बिना अपने बेटे को लिए उस लड़की वाले के घर पहुंच जाते । अपने लड़के की योग्यता पर इतना अभिमान था कि वो ये यह तक नहीं सोचते थे कि लड़की वाले भी लड़के को देखना चाहेंगे। श्रीमती ठाकुर को हमेशा यह लगता था कि पहले अपनी होने वाली बहू को मैं पसंद करूं तब अपने लड़के को लेकर दिखाने आऊंगी। अपने लड़के का रिजेक्ट हो जाने का भी थोड़ा डर नहीं था उनको। शुभम भी मां की हां में हां मिलाने वाला लड़का था।
इस तरह आज लगभग 15 वीं लड़की देखकर श्रीमान और श्रीमती ठाकुर अपने घर वापस जा रहे थे। ठाकुर पैलेस आया, वहां वह दूध की बनी स्पेशल चाय की चुस्की लेते हुए वहां पर आई एक दो गोरी लड़कियों पर नजर डालते हुए पतिदेव से कहने लगी कि मेरी होने वाली बहू एकदम गोरी ना सही कम से कम गेहुआ रंग की तो होनी ही चाहिए। श्रीमती जी(चाय की चुस्की लेते हुए) -वाह चाय तो बहुत ही अच्छी है। पतिदेव( श्रीमान ठाकुर) जी चाय और लड़की के गेहूंआ रंग के बीच बेचारा सा अनुभव कर रहे थे।
— कविता कन्नौजे