भावना को अपने शब्दों में पिरोते हैं
भावना को अपने शब्दों में पिरोते हैं,
चलो न अपनी अलग राह बनाते हैं।
कुछ चुनिंदा साथी मिलकर हम
सृजन का सुंदर संसार बनाते हैं।
अल्फ़ाज़ में सत्य के ही मोती गुंथकर ,
ग़लत के विरुद्ध अब आवाज उठाते हैं।
हम सबकी विचार धारा को मिलाकर,
एक अनूठा सा अटूट गठबंधन बनाते हैं।
रूढ़िवादी परंपरा का ही क्यूं निर्वहन?
संयमित जीवन की श्रृंखला बनाते हैं,
अरमानों को दफन करने से बेहतर
नए इतिहास का आगाज करते हैं।
राह में यूं ही भटकने से अच्छा हैं
मंज़िल तक जाने का प्रयास हैं करते,
आसमान की बुलंदी में जाना बेशक
पहले जमीं पर आशियाना बनाते हैं।
नफ़रत की एक बूंद भी जहर समान
फिजाओं में प्यार का रस घोलते हैं,
लंबी छलांग लगाकर कहां जाना हमें?
धीरे-धीरे ही सार्थक कदम बढ़ाते हैं।
अख़बार के विवादित पन्ना क्यों बनें?
मुख्यपृष्ठ के लिए अर्थ नया गढ़ते हैं,
उमड़ती हुई हृदयगत एहसास से
हर मन को पहले स्पर्श कर लेते है।
वी आराध्या