November 22, 2024

रेणुका तिर्की की कविताएं

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पिता की हथेलियां
बेहद खुरदुरी थीं
जिनसे हमेशा ग्रीस की महक आती थी
जिस कारण मैं हमेशा पिता के स्नेहिल स्पर्श से वंचित रही
पर हर महीने पगार मिलते ही पिता
चूम लेते थे मेरा माथा
और थमा देते थे मेरे हाथों में
कोई नई किताब

***

माँ आधे दिन बाद ही अक्सर
भाग जाया करती थी स्कूल से
ताकि कर सके किसी के खेत में मजदूरी
और भर सके अपने भाई बहनों का आधा पेट
गीतों की बुनकर मेरी माँ ने
धान रोपते समय जिन गीतों को अधूरा छोड़ दिया था
उनका कर्ज मुझ पर है

***

पिता से मुझे कागज और कलम मिली
माँ से भाषा और भाव
अब मैं कागज पर कलम से
भाषा और भावों की मजदूरी करती हूँ ।

रेणुका तिर्की

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