हर साँस मुन्तज़िर है …
हर साँस मुन्तज़िर है किसी इम्तिहान को
कितना कठिन थामना गिरते मक़ान को ।
गेहूं को अपने रोए- कोई अपने धान को ,
मौसम ये ज़ख़्म दे गया,है किसान को ।
बस मानते नहीं हैं ये गीता-क़ुरान की,
और मानते हैं सब यहाँ गीता- क़ुरान को ।
कुछ इस तरह से तड़पा है इक चाँद के लिए,
दिन रात ताक़ता है उस ऊँचे मकान को ।
मौसम के क्रोध के हम ही ज़िम्मेदार हैं ,
बेकार दोष दे रहे हैं आसमान को ।
✍️निहारिका शर्मा….