दिन अउ रात अपन खून…
दिन अउ रात अपन खून पसीना बहाके,
सिंचत हे किसान हमर देस के माटी।
इहां किसान मेहनत करत रहि जाथे,
अउ भरत हे जाने कोन-कोन अपन झोली।
धरती ले सोना उपजईया हा भूख मरही,
त कइसे मनाबो तीज-तिहार अउ होली-दिवाली।
तीपत धरती मा नंदिया-बईला संग खुदे नंदा गे,
धरती माता ला समझे हावे अपन महतारी।
पथराए धरती ला हलुवा कस बनाके,
धरती माता के सिंगार मा पहिरावय सोन के बाली।।
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उही किसान के कहानी जेमा हावे,
ओ फिलिम के नाम हे “अतरंगी”
ता देखे बर झन भुलाहु संगी हो,
अंतस मन से आपो हावव “अतरंगी”
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🖊️✒️नीतू साहू 🖋️📝