इज़हार
एक रोज़ जब तुम न आई
इंतज़ार तुम्हारा करते हुए,
याद तुम्हारी बहुत सताई
बात तब समझ में आई ।
मुहब्बत तुमसे करता हूँ,
तनहाई में तुमपे मरता हूँ,
कह नहीं पता तुम्हें देखकर,
जाने क्या-क्या बाते करता हूँ,
इज़हार -ए- मुहब्बत करता हूँ,
हाँ तुमपे ही मैं मरता हूँ।
पल-पल बाते तुम्हारी करता हूँ,
तुम बिन आँहें भरता हूँ,
इज़हार -ए- मुहब्बत करता हूँ।
तुम बिन है हर शाम अधूरी,
अधूरी हैं नदियों का किनारा
शाम ढले सूरज से ये मैं कहता हूँ
हाँ तुमसे मुहब्बत करता हूँ………
दीपा साहू “प्रकृति”