November 21, 2024

बीत रहा है दिवस आज भी
ऋतु आषाढ़ के नहीं बादल;
पथ से अटक-भटक गये हैं
पर्य प्रदूषण से हुये घायल।

कृषक खेत नित करे अगोरा
वर्षा मेघ के अंबर आने की।
ले आषाढ़ की फुहार-झकोरे
तपन गगन धरा हर जाने की।।

सूरज जल-जल कर है बेचैन
सागर जल से भाप बना कर;
जाने क्यों मौन पड़ा है पावस
कोयल थकी अमरैय्या गा कर।

बादल अब तक क्यों न आये
रामगढ़ पर्वत पर यक्ष निढाल;
किस के हाथ भेजे लिख पाती
मेघदूत का दर्शन हुआ मुहाल।

जाने क्यों नहीं पावस आया
गृष्म ताप से धरती जलती है।
उदह निचुड़ गये हैं जल सोते
जल बिन जीव,प्यासी धरती है।

कह गये गिरिधारी योगेश्वर कृष्ण
करने गोवर्धन का संवर्धन,पूजा।
श्रेष्ठ देवता वन उपवन पर्वत वृक्ष
निर्मल जल सोता सा न दूजा।।

-अंजनीकुमार’सुधाकर’

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