November 24, 2024

स्मरण अपने विद्या गुरू नन्दू लाल जी चोटिया का

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डॉ. चन्द्र शेखर शर्मा

आज 8 जून को छत्तीसगढ़ के प्रिय कवि, मशहूर मंच संचालक डॉ. नन्दूलाल चोटिया जी की जयंती है. मैं उस पीढ़ी में से हूँ जिन्होंने उन्हें देखा और सीखा है. मुझे मंचों पर बोलना और कागज़ों पर भावों को उतारना सिखाने वाले मेरे की सारस्वत गुरुओं में से वे एक थे. उनके साथ जीवन के क्षण बिताने वाली पीढ़ीअब नहीं है सो अन्तरंग संस्मरण अब सेकंड हैंड ही होंगे. अपनी पिछली पीढ़ी से हम सुनते आये हैं कि चोटिया जी में गजब कि सृजन क्षमता थी. उनकी कविताओं में अलग ही जोश था और वे उन्हें के ओज के अलोक में कवि सम्मेलन का रात रात भर ऐसा सञ्चालन करते कि लोगों को पता ही नहीं चलता कि कब भोर ने दस्तक दे दी. प्रख्यात हास्य कवि शैल चतुर्वेदी उन्हें अपना काव्य गुरु मानते थे. और वे ही क्यों अस्सी के दौर तक के अधिकांश कवियों के वे काव्य गुरु ही थे.

किसी ज़माने में रामाधीन मार्ग के नवरत्न मंडल का गणेश उत्सव बहुत प्रसिद्ध हुआ करता था. अब मंडल तो है पर वह आलोक नहीं जो हमने देखा है. इस मंडल के गणेश उत्सव में एक दिन कवि सम्मलेन होता जो सुबह चार बजे तक चलता. मेरी अभिरुचि कविसम्मेलनों और कविताओं में शुरू से रही है कवि सम्मलेन हो और मैं न जाऊं यह असंभव चाहे मौसम कैसा भी हो. घर पास ही है तो नवरत्न मंडल मैं दस -बारह साल का बच्चा होने के बाद भी चुपके से चला ही जाता. सुनना अच्छा लगता रहा है. यह बात मम्मी और दादी को मालूम होती. जैसा कि हर साल होता था पूरा रामाधीन मार्ग खचा खच गंज चौक तक भरा था. इधर काली माई मंदिर को रामाधीन मार्ग से जोड़ने वाली सड़क भी भरी थी. देर हो चुकी थी. शैल चतुर्वेदी देर से आए. आते ही मंच पर चढ़े और हज़ारों लोगों को सम्बोधित करते हुए बोले -भाई मुझे क्षमा करना मैं देर से आया हूँ क्यूंकि चोटिया जी बीमार हैं और मंच पर चढ़ने से पहले मुझे उनको देखने जाना ज़रूरी था. वो मेरे जैसे कई कवियों के गुरु हैं.

मैं बहुत छोटा था. शैल चुर्वेदी को ब्लैक एन्ड व्हाइट टी वी स्क्र्रीन पर नए साल और होली पर ही देखने वाला उन्हें अपने से कुछ फ़ीट दूरी पर बिना इन किये हुए हाफ शर्ट और फुल पेंट में देख रहा था. पर उन्हें सामने देखने उत्साह तब आश्चर्य में बदला जब उन्होंने चोटिया जी का नाम लिया. सच, उस दिन पता चला कि कामठी लाइन अपने होमियोपैथी क्लिनिक में बैठे, और शहर में अनेक जगहों सिर्फ पैदल चलते जिस दुबले पतले, मोटे फ्रेम का चश्मा पहने, धोती कुर्ता पहने जिन नन्दूलाल जी चोटिया को मैं देखता आया हूँ वे इतने महान और प्रतिष्ठित कवि हैं. साधारणता में असाधारणता का दर्शन चोटिया जी में हो गया था. फिर वाद विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने के दौर में चोटिया जी से नोट्स लेने और वक्तृत्व-कला कि बारीकियां सीखने अवसरोचित जाने लगा. उनसे पारिवारिक सम्बन्ध थे सो संकोच को ज्यादा बड़ा स्थान नहीं था. पर वय और सम्मान से उपजी हुई दूरी बहुत थी.

नांदगाँव के साहित्यिक वातावरण में अधपके बालों वाले लोगों की यह आखिरी पीढ़ी होगी जिन्होंने चोटिया जी को देखा -सुना है. उनकी फक्कड़ी , बेबाकी, निडरता, और तार्किक शक्ति को महसूस किया है. उनके जाने के बाद मेरा एक आलेख ‘सबेरा संकेत’ में छपा भी. बस उसके बाद उन पर आज लिख रहा हूँ. अपराधबोध से ग्रसित हूँ.

डॉ. नंदू लाल चोटिया की कविता मस्तिष्क पर ही नहीं मन को भी प्रभावित करती है. कविता में आनंद और बौद्धिकता कैसे सम्मिश्रित की जाती है यह चोटिया जी की कविताओं से सीखा जा सकता है. ‘रोटी’ उनका प्रिय शब्द वह वह बार बार कविताओं में आकर दस्तक देकर कहता है कि सिर्फ आटे-पानी का मिश्रण नहीं बल्कि वह भूख का पर्याय है, जिन्दगी का आधार है, मेहनतकश का इनाम है, और सारी जद्दोजहद का मूल है। फसल उनके लिये केवल अन्न न होकर किसान का धन है। उनकी कविताओं में सरलता के प्रवाह में गूढ़ रूपक भरें हैं। काव्य की सरलता ही उनका जादू है। एक सामान्य व्यक्ति उनके रूपकों को सामान्य शब्दों के रूप में लेकर आनंदित होत है वहीं किसी विचारधारा से जुड़ा बुद्धिजीवी उनकी कविताओं के रूपकों को अपने बौद्धिक धरातल के अनुरूप विश्लेषणीय बना सकता है। वे श्रमजीवीयों और बुद्धिजीवियों दोनों के कवि हैं। उनकी कवितायें उनकी तीन किताबों में पढ़ी जा सकतीं है- वक्त की हवायें, रोटी तथा अन्य कवितायें, फसल तथा अन्य कवितायें।

राजनांदगाँव पर कोई चर्चा हो और उनका नाम न आए ऐसा हो नहीं सकता। और यदि ऐसा कहीं होता भी हो तो वह चर्चा नहीं बस ठठ्ठा होगा। छब्बीस बरस बीत गए उनको गए पर उस व्यक्तित्व की पूर्ति असंभव है। दशकों से नांदगॉंव के लोकप्रिय अखबार सबेरा संकेत को उनका आशीष बराबर मिलता रहा। वे इसके रविवारीय में प्रकाशित शब्द संसार को बड़ी शिद्दत से रुचि लेकर तैयार करते। जब मैं सबेरा की मुख्य बैठक (तब कोई सम्पादकीय कक्ष नहीं था) के पीछे टेलीप्रिंटर के पास पाठकों के पत्र का पुनर्लेखन कर रहा होता तो शनिवार दोपहरी उनकी आवाज प्रूफरीडर के साथ बैठक में गूंजती-खाली खाली खाली काला खाली खाली काला, जो कि शब्द संसार के खानों से सम्बंधित होती। आज उम्र के इस पड़ाव पर लगता है उस पीढ़ी के लोग बहुत जल्दी चले गए, उनसे बहुत कुछ सीखना, बहुत कुछ लेना बाकी रह गया।

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