“छत्तीसगढ़ मा “खुमान संगीत” के जन्मदाता खुमानलाल साव जी के पुण्यतिथि मा छन्द के छ परिवार के काव्यांजलि समर्पित हे” –

(1) मत्त सवैया – मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव
मोर रग-रग मा संगीत बसे, मँय हरमुनियम के लहरा अंव
मँय मोहरी बंसी ढोलक अंव, मँय बेंजो घुँघरू तबला अंव
मोर साँस साँस मा तान हवै अउ ताल हवै हर धड़कन मा
तुम कान लगाके सुनव चिटिक, मँय छत्तीसगढ़ के कन-कन मा
कविता के गाड़ीवाला बन, मँय दया मया बगरइया अंव
छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।1।
मोर बसेरा कहाँ नहीं मँय रइपुर के रजधानी मा
मँय शिवनाथ अरपा पैरी अउ महानदी के पानी मा
मँय खेतीखार के रुमझुम मा, चूरी के छन्नर छन्नर मा
मँय बसँव चंदैनी गोंदा मा, पैरी के खन्नर खन्नर मा
मँय लछमन के बलदाऊ गा, मँय रामचन्द्र के सपना अंव
छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।2।
मोर संग चलव गावत रहिथौं, तब पुरवैया चल पाथे जी
संतोष टाँक के बंसी सुन, कान्हा हर रास रचाथे जी
गिरिजा सिन्हा के बेंजो मा, इंदरावती रुनझुन गाथे
देवदास के मोहरी ला सुन, सुरुज देव सोनहा आथे
ठाकुर महेश के तिरकिट धुम, मँय फूल चंदैनी गोंदा अंव
छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।3।
मँय भैयालाल हेडाऊ के सुर मा कबीर बन जाथंव जी
अनुराग संग मँय बखरी के तूमा के नार कहाथंव जी
मँय संतोष बसंती अउ संगीता किस्मत के सुर अंव
रविशंकर केदार साधना, मस्तुरिया कस गुरतुर अंव
साभिमान के रक्षा खातिर, साजा आगी अँगरा अंव।
छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।4।
काया माटी मा मिल जाही, मँय संसो चिटिको करँव नहीं
जन-जन के मन मा जीयत रहूँ, मोर दावा हे मँय मरँव नहीं
जब तक सुरुज-चन्दा रइही, संगीत सुनाहूँ जन-जन ला
कोरा कागद मा लिखवा लौ, मँय गीत सुनाहूँ जन-जन ला
सब खुमान मोला कहिथें, मँय रस के भरे बदरिया अंव।
छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।5।
छन्दकार – अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
(2) दोहा छन्द –
जादूगर संगीत के, स्वर्ग सिधारिन आज।
धन्य धन्य हे साव जी, तोर उपर हे नाज।
छिटके गोंदा फूल हा, निच्चट हे कुम्हलाय ।
हारमोनियम चुप हवय, सुध बुध अपन भुलाय ।
रइही जुग जुग ले अमर, श्री खुमान के नाम।
बाँटिच मया दुलार ला, नेक सबो हे काम।
छंद के छ परिवार के, अर्पित हे दू फूल।
तोर चरण मा सिर नवा ,माथ चढ़ा के धूल ।
छन्दकार – चोवाराम वर्मा “बादल”
ग्राम – हथबन्द, जिला – भाटापारा बलौदाबाजार
(3) दोहा छन्द –
हारमोनियम चुप हवय, रोवत हावय गीत।
सिसकत हावय राग धुन, कहाँ गए तँय मीत।
स्वागत करत सरस्वती, आगय मोरे लाल।
शांति सदन मा बस बजय, देवन मन के ताल।
धरती हा रोवत हवय, सुन्ना लगे अकास।
तबला ढोलक झाँझ सब ,बइठे हवे उदास।
श्री खुमान के साधना, जग बर हे वरदान।
माटी पानी अउ हवा, करत हवँय सम्मान।
सुन्ना होगे लोकधुन, सुन्ना होगे राग।
रोवत हे संगीत हा, मोर फूटगे भाग।
नमन करत हँव साव जी, श्रद्धा सुमन चढाँव।
आँखी आँसू जल धरे ,चरणन माथ नवाँव।
छन्दकार – आशा देशमुख
एन टी पी सी जमनीपाली, कोरबा
(4) सरसी छन्द –
सुन्ना होंगे महतारी के, पबरित कोरा आज।
तोर करत हे सुरता जुन्ना, रोवत सबो समाज।।
कला संस्कृति सुसकत भारी, छुटगे जुन्ना मीत।
कइसे पाही नवा राग अब, तोर बिना संगीत।।
चंदैनी गोंदा मुरझा के, होगे आज अनाथ।
तबला पेटी माँदर झुमका, ठोकत हावय माथ।।
तँय भाखा छत्तीसगढ़ी ला, दुनिया मा बगराय।
भाखा महतारी सेवा मा, जिनगी अपन बिताय।।
श्री खुमान संगीत पुरोधा, अमर रही ये नाम।
अपरन श्रद्धा-सुमन पाँव मा, बारम्बार प्रनाम।।
छन्दकार – दीपक कुमार साहू
ग्राम-मोहंदी (मगरलोड) जिला – धमतरी
(5) चौपई (जयकारी) छन्द
धान कटोरा के दुबराज, कइसे दुबके तैंहर आज।
सुसकत हावय सरी समाज, रोवय तोर साज अउ बाज।।
चंदैनी गोदा मुरझाय, संगी साथी मुड़ी ठठाय।
तोर बिना दुच्छा संगीत, लेवस तैं सबके मन जीत।।
हारमोनियम धरके हाथ, तबला ढोलक बेंजो साथ।
बाँटस मया दया सत मीत, गावस बने मजा के गीत।
तोर दिये जम्मो संगीत, हमर राज के बनके रीत।
सुने बिना नइ जिया अघाय, हाय साव तैं कहाँ लुकाय।
झुलथस नजर नजर मा मोर, काल बिगाड़े का जी तोर।
तोर कभू नइ नाम मिटाय, सातो जुग मा रही लिखाय।
तोर पार ला पावै कोन, तैंहर पारस अउ तैं सोन।
मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर, देय धरा मा अमरित घोर।
तोर उपर हम सबला नाज, शासन ले हे बड़े समाज।
माटी गोंटी मुरुख सकेल, खेलत हवै दिखावा खेल।
छन्दकार – जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को, जिला – कोरबा
(6) दोहा छन्द –
साध लोक संगीत ला , अम्मर होय खुमान ।
नवा नवा सब धुन गढ़े , मिले रहिस बरदान ।।
अद्धर होगे लोकधुन , सुसकत हावय गीत ।
इहाँ उहाँ खोजत हवय , कहाँ गवाँगे मीत ।।
सुन्ना हे चारों मुड़ा , होगे जइसे साँझ ।
बइठे हवय उदास अब , तबला ढोलक झाँझ ।।
महकत गोंदा फूल के , देख सुखागे झाड़ ।
आँसू ढरकावत हवय , तबला पेटी ठाड़ ।।
लोक गीत जब बाजहीं , अम्मर रइही नाँव ।
श्रद्धा के दू फूल ले ,परत हवँव मँय पाँव ।।
छन्दकार – पोखन लाल जायसवाल
ग्राम – पठारीडीह, पोस्ट कुसमी (पलारी),
जिला – बलौदाबाजार भाटापारा
(7) दोहा छन्द –
लोक कला संगीत के,शिल्पी खोगे आज|
चंदेनी गोंदा सहित,कलपत हे हर साज||
मधुर गीत संगीत के,आन बान तॅय शान|
छत्तीसगढ़ उदास हे,सुनके खबर खुमान||
पेटी तबला आज गा, करत हवॅय फरियाद|
कोई तो बतलाव जी,कहाॅ हवय उस्ताद|
गीतकार हा पद रचे,बढ़य साज ले भाव|
बारामासी गीत ले,सुरता आही साव||
बिसरावत धुन लोक ले, गढ़े नवा संगीत|
गांव गली चौपाल मा, बैठ सुनिन सब गीत||
स्वाभिमान ला छोड़के,नइ चाहे जे मान|
अइसन कला विभूति के, करथे जग सम्मान||
महक सोंदहा गीत बर,सदा करे तॅय काम|
सुरता करही ये धरा,अमर रही जी नाम||
गाड़ी वाला हा किहिस, संग चलव रे मोर |
उड़त परेवा के तभे, नइ थम पाइस डोर||
छन्दकार – महेंद्र कुमार बघेल
ग्राम – कलडबरी (डोंगरगाँव) जिला – राजनाँदगाँव
(8) आल्हा छन्द
लोक रंग के राजा बेटा, दुनिया भर मा जस बगराय ।
लोक गीत के सुर ला बाँटे, गहरा नींद म कहाँ लुकाय।।
ढोलक माँदर सबो अगोरे,थाप देवइया छोड़े साथ।
ढ़फली खंजरी अउ घुंघरु,रोवत छोडिस हमला नाथ।।
कला संस्कृति नाँव करइया,छत्तीसगढ़िया मन के मीत।
साज आज सब रद्दा देखय,खुमान बेटा के संगीत ।।
काल बिपति बड़ भारी पड़गे,नौ जून मंझन जेठ मास ।
लोक रंग चंदैनी गोंदा,रोवत सुसकत हवय उदास।।
छन्दकार – डॉ. मीता अग्रवाल
रायपुर, जिला – रायपुर
(9) छप्पय छन्द –
रोवत तबला ताल, मोहरी कल्हरत हावै।
नाल हाल बेहाल, बाँसुरी कलपत हावै।
ढोलक टासक झाँझ, मांदरी गुन-गुन बोले।
हारमोनियम राग, बात अन्तस के बोले।
सुसकत जम्मों साज हा, लोककला के शान के।
ढारय आँसू मन हृदय, सुरता करत खुमान के।1।
साधक सुर संगीत, करत हन तोरे सुरता।
छेड़स सुर संगीत, पहिर के धोती कुरता।
लोककला के भीष्म, सबे झन कहिथे तोला।
रहिबे अमर खुमान, भले तैं तज दे चोला।
सेवा तोर अमोल बर, बार बार जोहार हे।
आबे बन संगीत तैं, इही हमर गोहार हे।2।
कलाकार इंसान, सहज अउ सीधा साधा।
हृदय बसे संगीत, मनहुँ मोहन मन राधा।
बाजे बनके नाल, कभू बन घुँघरू खनके।
महकाये सुर साज, चँदैनी गोंदा बनके।
लोककला के शान अउ,आवस हमर गुमान जी।
श्रद्धांजलि संगीत गुरु ,सौ सौ नमन खुमान जी।3।
छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू
ग्राम – बोडराबांधा (पाण्डुका)
वि.स. – राजिम जिला -गरियाबंद