June 13, 2025
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लौट आओ
आँसुओं
वापस आँखों में
अब समंदर में भी और जगह नहीं है
खारेपन के लिये

पहाड़ों ने भी
लौटा दी हैं
विकम्पित
प्रतिध्वनियाँ

ग्लेशियर
दरक रहे हैं

धुँधलके को चीरकर
झर रहीं हैं स्मृतियाँ
सूखे पात सी
दरख्तों से

इन्तजार को
इन्तजार है
इन्तजार का

लौट आओ
फिर न लौटने के लिए

त्रिलोक महावर

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