चादर ओढ़े …

चादर ओढ़े धूप को चिंदी-चिंदी आग।
मौसम फूंफूं कर रहा, जैसे काला नाग॥
चिरई-चुनमुन लापता, मौसम की अंधेर।
लगी सुलगने दोपहर, खाली हर मुंडेर।।
बही पसीने की नदी, सुलगे-सुलगे घाट।
दूर-दूर तक लापता, हवा-लहर के ठाट॥
आसमान से आ रही अंगारों को खेप।
मेहनतकश के देहभर तू-लपटों का लेप।।
पारे चढ़े हुजूर के, ताप चढ़ा आकाश।
रुपया-पैसा हो गया, सबका माई-बाप।।
जय प्रकाश