November 21, 2024

विविधताओं के दौर में मील का पत्थर है – सुरेश चन्द्र शुक्ल का मिट्टी के देवता काव्य संग्रह

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विश्व हिंदी संगठन, नई दिल्ली के द्वारा आयोजित मूर्धन्य अप्रवासी साहित्यक डॉ. सुरेशचंद्र शुक्ल ‘शरद आलोक ‘ के काव्य संग्रह *मिट्टी के देवता* पर परिचर्चा का आयोजन किया गया ।
इस परिचर्चा में मुख्य अतिथि रहे प्रो . शैलेन्द्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन । उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि इस संग्रह की विशेषता है मानवीयता, संवेदना एवं सहिष्णुता ।
भारत के उन तमाम ज्वलंत मुद्दों पर प्रखरता से कवि शरद आलोक जी ने निर्भीक होकर अपनी बात रखी । कवि की रचनाधर्मिता को प्रो. शर्मा ने वाल्मिक के रचनाधर्मिता से जोड़ते हुए कहा कि इनकी कविताएँ *वर्तमान युग* *जीवन का साक्षात्कार हैं।*
अगली वक्ता के रूप में राजस्थान से डॉ. बबीता काजल जी जुड़ी और उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि यह काव्य संग्रह वैश्विक संग्रह है जिसमें नार्वे से ले कर भारत तक की परिस्थितियों स्थितियों को एक फ्रेम में प्रस्तुत किया गया है.
सवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध इस संग्रह में किसान व मजदूर के माध्यम से लोकतंत्र पर केंद्रित है.

विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र की मिसाल रहे भारत की अंदरूनी परिस्थितियों पर व्यंग्य, शासकीय योजनाओं पर प्रहार करती है
इस दृष्टि से साहसिक रचना होने के साथ परिवर्तन कामी काव्य संग्रह है ।

डॉ. कोयल बिस्वास, बेंगलुरु से हमारे बीच रही और उन्हों इस काव्य संग्रह के बारे में कहा कि
कवि सुरेशचंद्र शुक्ल जी का कविता संग्रह ‘मिट्टी के देवता’ वास्तव में चेतना को झकझोड़ देने वाली कविताओं का गुलदस्ता है| 72 कविताओं में कवि ने निर्भीकता से समाज में पनप रही विसंगतियों का पर्दा फ़ाश किया है| उनकी कविताओं में किसान आंदोलन से लेकर प्रजातन्त्र पर आने वाली चुनौती पर उन्होंने इंगित किया है| भावनाओं में न बह कर यथार्थवादी कठघड़े पर खड़े होकर चीख चीखकर उनकी कविताएं पुनः उस क्रांतिकारी भारतवासी को जगाने का भरसक प्रयास किया|
हर भारतवासी में कवि विवेकानंद को जगाने का प्रयास करते है क्योंकि विवेकानंद जी युवा शक्ति, जागरण एवं साहस का प्रतीक है| कवि की कविता ‘विवेकानंद बहुत रोये हैं’ में कवि देश में बढ़ती हुई अशिक्षा पर चिंता व्यक्त किया है| उनका यह कहना, ‘दुनिया में करोड़ों बच्चे, शिक्षा से दूर हैं’ संवेदना से भरपूर है जिसमें वह आगे वह लिखते है, “जिस देश में 40 प्रतिशत साक्षर होने को आतुर है|”भारत से दूर प्रवास में बैठे अपनी जड़ों को याद करके कवि ने उन यादों को सहेजा है| कविता ‘किताबों में मिली चिट्ठी’ के माध्यम से उन्होंने प्रवासी साहित्यकार का अपनी रचनाओं की किताबों का पुस्तक मेले में चित्रित किया है| कहीं न कहीं उनकी कविताओं में उस संघर्ष का भी आभास मिलता है जो हर किसी प्रवासी साहित्यकार को झेलना पड़ता है|
कवि समय को अपनी कविताओं में बांध देता है, समस्या से लेकर समाधान तक की यात्रा कवि अपनी कविताओं के माध्यम से तय करता है| इसलिए लोकतंत्र के स्खलित मूल्यों पर आशंका व्यक्त, किसान समस्या पर उद्वेलित एवं अशिक्षा के कारण भारत के भविष्य को लेकर उद्विग्न कविता संग्रह ‘मिट्टी के देवता’ हर पुस्तकालय में अपना आसान बनाए यहीं कामना है।तेलंगाना से जुड़ी डॉ. अपर्णा चतुर्वेदी जी ने कहा कि इस काव्य संग्रह की 72 की 72 कविताएँ समसामयिक जीवन के ज्वलंत मुद्दो को उधेड़ती हैं ।
*मिट्टी का कर्म है जीवंतता, उर्वरता और यह संग्रह इन्हीं का प्रतिविम्ब है।*
अगली वक्ता रही महाराष्ट्र डॉ. रेविता बलभीम कांवले जी ।उन्होंने कवि के निर्भीक बयानबाजी की ओर इशारा कर *नार्वे में रह रहे कविमन की नीर क्षीर दृष्टि की सराहना की ।* सारी काव्य रचनाएँ अपने आप में सुघड़ संदेश नदयुवक और राष्ट्रहित प्रेरकों के प्रति समर्पित है।
कार्यक्रम में स्वयं कवि डॉ. सुरेश चंद्र शुक्ल ‘ शरद आलोक ‘ जी का भी सान्निध्य लाभ प्राप्त हुआ और संग्रह से उन्होंने दो कविताओं का वाचन भी किया जो कि अद्भत रहा ।
कार्यक्रम के अंत में आभार ज्ञापन किया विश्व हिंदी संगठन के अध्यक्ष डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय जी ने। हमेशा कि तरह गागर में सागर भरते हुए पूरे काव्य संग्रह के 72 कविताओं का संग्रह करते हुए कहा कि यह *बहत्तर रचनाएँ बहतर होती हुई बेहतरीन की ओर ले जाती हैं। जब सत्ता से व्यक्ति लड़ता है तो वह पर्थप्रदर्शक कवि युग प्रवर्तक हो जाता है।* शुक्ल जी की रचनाएँ मनुष्यता धर्म का निर्वाह करते हुए भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन को आत्मसात किए है। यह सर्जना अप्रतिम है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. आरती पाठक , छत्तीसगढ़ से कुशलतापूर्वक किया ।

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