कहता है जब कोई…
कहता है जब कोई,
तुम्हें गुस्सा क्यों नहीं आता
तुमसे न क्यों नहीं बोला जाता
क्यों सबको अच्छा समझती हो
किसी से कुछ भी
क्यों नहीं पूछती
तुम खुल के क्यों हंसती हो
अकेले क्यों निकलती हो
सोंचे बिना दोस्ती क्यों करती हो
क्यों इतना विश्वास करती हो…
ऐसे सवालों के;
कहना चाहिए,
इतने किलो *क्यों* के बोझ तले दब कर भी,
जवाब में
हंसने के अलावा
मुझे कुछ नहीं समझ आता…
हंस लेने के बाद,
बस, इतना ही कह पाती हूँ;
यही हूँ मैं!!
अपने दिल की सुनती
अपने मन की करती
सबका मान करती
जिसके करीब होती,
दिल से होती
नहीं तो बस;
अपने में रमती हूँ
दिल टूटता है
तो अपने सबक लेती हूँ
कोई समझता है मुझे
तो अपने विश्वास पे
और दृढ़ होती हूँ
प्यार के हर पल,
दर्द के हर कतरे
को स्वीकारती
सागर सी बहती हूँ
….मुझे अपनी स्वतंत्रता बेहद प्रिय है!!!
~पल्लवी