ग़ज़ल
वक़्त कहता है लगातार बचाओ पानी
अपने बच्चों के लिए छोड़ते जाओ पानी
सारे दरिया, नदी, तालाब, कुएँ और झीलें
ख़त्म हो जाएँगे ऐसे न बहाओ पानी
रो रही बर्फ़ पहाड़ों की नदी से मिलकर
प्यास ज़्यादा है ख़ुदा और बनाओ पानी
ग़म को सीने में रखोगे तो जियोगे कैसे
ग़म बहाने को भरो चश्म गिराओ पानी
प्यास को मात दे लौटा है जो सहराओं से
उसको उम्मीद मिले सिर्फ दिखाओ पानी
फिर से उम्मीद से हैं खेत कछारी वाले
अब के बस प्यास के जितना ही पिलाओ पानी
आदमी सोख के धरती को वहीं आएगा
कह दो मंगल से ज़रा जल्द छुपाओ पानी
– व्यंजना पाण्डेय जी, नोएडा