विकट थी समस्या
डाकुओं ने उसे
कुछ दिन नहीं
वर्षों तक अपने साथ रखा
फिर भी डाकू न बना सके
विष न भर सके दिमाग में
गाली देना नहीं आया उसे
न दुत्कारना, न ठोकर मारना
वह अभी भी प्यार से
जी हुजूर कहता है
जिससे छीनना है
उसे दूर भगा देता
गोली की आवाज से डर जाता
हार कर उसे बेच दिया
एक बड़े साहूकार को
यहां अचानक उसका रंग बदला
दासता का भार सह न सका
डाकुओं के साथ गुजारे
दिन याद आने लगे
चमत्कार हुआ उसकी देह में
सोचने का रसायन बदला
सारे गहने लूट कर सेठ के
जा मिला डाकुओं से
चकित थे गैंग के आदमी
अब वह पहले जैसा नहीं रहा
उसके सामने के दांतों से
विष टपक रहा
आंखें भी खूंखार
मुंह से गालियां
हाथ में सेठ की लाइसेंसी पिस्तौल
विकट थी समस्या
सरदार के सामने
उसे मित्र माने या पुराना दास
*नरेश अग्रवाल*