तीजा…
का बिहनिया का संझा,
रहि रहि रस्ता देखे जा ,
भइया आवत होही का ,
भेजे होही दाई हा ।
ओ पोरा के रोटी धर,
आइस मंझनी मंझना घर,
तुरते देइस खाये बर
करिस तियारी जाये बर ।
बस में रहय रेलम पेल ,
गोंजत रहय पेलम पेल ,
लागे जइसे होगे जेल ,
का करबे फेर सब ल झेल ।
दिन तीजा के अब्बड़ खास,
रेहेस लांघन झेलेस प्यास ,
पूरा होही मन के आस ,
कहिथे मोर मन के बिंसवास ।
भइया घर के बेसन- तेल ,
जइसन मरजी तइसन मेल,
संग-संगवारी सबो सकेल ,
मजा उड़ा ग जम के झेल ।
मइके के लुगरा बढ़िया ,
मया अँछरा में गठिया ,
तय दु ठन कुल के बगिया ,
जिनगी ल सबके महका ।
पूरा होही तीजा ह ,
अमरा अही भतीजा ह ,
देखत होही रद्दा ल ,
हमर मयारू जीजा ह ।
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@लोकनाथ साहू “आलोक ”
भें.नवागाँव, बालोद
/टेमरी ,रायपुर छ. ग.