खाने की मेज़ पर बुलाने की तमन्ना है
न जाने कितने ही लोगों को
इस बरस भी खाने पर
बुलाना रह गया
और न जाने कितने ही लोग दोबारा
जल्दी मिलने का कह कर इस भरी दुनिया से निःशब्द चले गए
प्रेमसिक्त पंखुड़ियों को उड़ेलकर किसी के लिए सुरुचिपूर्ण रसोई पकाना
किसी का माथा चूमने से अधिक
साहस और संतोष का काम है
घर के तमाम बर्तनों में अब भी
किसी के नाम की
आसक्ति और प्रतीक्षा धड़कती है
जिसे हम हृदय की कंदराओं में जीते हैं
कुछ प्याली और तश्तरी उठाकर
आलय के ऊपरी कमरे के पीले संदूक में
सूती कपड़े में बांधकर रख दी है
ताकि उनकी चमक और रंगत
आगंतुकों के
आकर्षण का केंद्र बनी रहें
और उन्हें अपनी
श्रेष्ठता का बोध होता रहे
खाने की मेज़ का वह अकेला कोना
जिस पर बैठकर टुकुर-टुकुर
निहारा करते थे
आज उस पर नूतन आवरण बिछाया है
जल्दी ही किसी रोज़ उन्हें खाने पर
बुलाने की तमन्ना है
असंख्य मनपसंद व्यंजनों की
एक सजीली थाल सजाई है
प्रत्येक कौर को ख़ूब मन से मीसकर
ग्रास बनाया है
ताकि हाथों के स्पर्श का स्वाद
आहार में घुलता रहे
पुरखिनों को कहते सुना था,
दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है
भोजन के उपरांत उँगलियाँ चाटना
मन का अतिरिक्त मुदित होना ही तो है
अनु