न कभी देखा, न सुना…
चिता धूँ-धूँ कर जल रही थी और श्मशान ठहाकों से फटा पड़ रहा था… ऐसा न कभी देखा गया, न सुना गया।
उनकी इच्छा थी जब वह मरें तो कोई न रोए… सब ठहाके लगाएँ। उन्होंने देश की जनता को जीवनभर हँसाया था। और हँसाना भी ऐसा कि रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, नागार्जुन, गोपालदास नीरज सरीखे कवियों को मंच पर सुनवाने के लिए श्रोताओं से ख़ुद उन्हें आग्रह करना पड़ता कि अगर इन्हें नहीं सुनोगे तो मैं भी कविता नहीं सुनाऊँगा। और जनता इस धमकी के आगे झुक जाती। उसे तो काका हाथरसी को सुनना होता।
काका की इच्छा थी कि उनकी अंतिम यात्रा ऊँटगाड़ी पर निकाली जाए। परिवार के हम लोगों ने इसका ध्यान रखा। मृत्यु पर दो दिन हाथरस बन्द रहा। दो-ढाई किलोमीटर की अंतिम यात्रा में लगभग पाँच घंटे लग गए। छतों पर स्त्रियाँ घूँघट लगाए, बच्चों को गोद में लिए काका के ऊपर लगातार फूल बरसा रही थीं। यात्रा जब हलवाई के पास पहुँची तो उसने इमरतियों की एक माला समर्पित की। काका को इमरती बहुत पसंद थीं।
उस दिन जब काका की चिता को मेरे बड़े भाई लक्ष्मीनारायण गर्ग ने मुखाग्नि दी तो हज़ारों की भीड़ में कुछ युवा कवि कहीं से माइक्रोफ़ोन जुगाड़ लाए। साथ में एम्प्लीफ़ायर, स्पीकर और बैटरी भी। ऊँची-सी जगह देख चादर बिछाई और मंच तैयार। घोषणा हुई — “यह काका हाथरसी का अंतिम संस्कार है। काका नहीं चाहते थे उनकी मृत्यु पर कोई रोए।” इसके बाद शुरू हुआ काका के मज़ेदार संस्मरणों और उनकी हास्य-कविताओं का विस्मयकारी सिलसिला। पूरा श्मशान चौतरफ़ा ठहाकों से गूँज उठा। शोक में डूबे हम परिवारीजन चकित थे। ऐसी कल्पना तो किसी ने नहीं की थी।
काका के संस्कार कॉंग्रेस के नज़दीक थे। लेकिन उनकी लोकप्रियता हर राजनीतिक दल के मूर्धन्य नेताओं तक जाती थी। सब उनका हृदय से आदर करते। जनसंघ (अब बीजेपी) के अटल बिहारी वाजपेयी तो मंच पर घोषणा करते थे कि इमरजेंसी के दौरान जब मैं जेल में था तो कविता लिखने की प्रेरणा मुझे काका की कविताओं से मिलती थी। इसीलिए काका हाथरसी को अटल जी अपना काव्य-गुरु कहते थे।
हाथरस काका को अत्यन्त प्रिय था। यों वह सारा देश घूमते थे। कविसम्मेलनों के सिलसिले में महीने में 20-22 दिन उनका बिस्तरबंद बँधा ही रहता था। प्राण भी उन्होंने हाथरस में ही त्यागे। उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी इसलिए अपने बड़े भाई की हम सब संतानों में से मेरे बड़े भाई श्री लक्ष्मीनारायण गर्ग को उन्होंने गोद ले लिया।
आज काका के जन्म की 117वीं वर्षगाँठ है और आज ही है उनकी 28वीं पुण्यतिथि। वह जिस दिन जन्मे, 89 साल बाद ठीक उसी तारीख़ (18 सितंबर) को इस दुनिया से विदा हुए।
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मुकेश गर्ग
18 सितंबर 2023