ख़त्म फूलों की निशानी…
ख़त्म फूलों की निशानी हो रही है
ख़ूब अच्छी बाग़बानी हो रही है!
क्यों नहीं मातम हो बकरे के घरों में
खाल ढोलक की पुरानी हो रही है
तुमने भी की थी तरक़्क़ी की दुआयें
लो! कली अब रातरानी हो रही है
फिर गले मिलने को है मक्खन से चाक़ू
देखिये ! क्या मेहरबानी हो रही है
जिस तरफ़ भी देखिये, सत्ता के सर पे
सेट पगड़ी ख़ानदानी हो रही है
पहले आ जाती थी आसानी से ख़ुशियाँ
कुछ दिनों से आनाकानी हो रही है
तू नये उन्वान से अब इब्तिदा कर
ख़त्म ‘साहिल’ की कहानी हो रही है
@सुशील साहिल
+उन्वान – शीर्षक
*इब्तिदा – शुरुआत