छत्तीसगढ़ का लोक-पुराण : लोकस्मृति और इतिहास
माना जाता है कि पुराणों में इतिहास और कल्पना के रंग घुले-मिले होते हैं।कहीं अधिक कहीं कम।इतिहास का अध्येता उसे सम्यक दृष्टि से देखता है,परखता है। पुराण लिपिबद्ध हैं,मगर लोकजीवन का भी अपना पुराण होता है जो अमूमन लिपिबद्ध नहीं होता! कोई बिरला लोकप्रेमी,कोई अध्येता इनको दर्ज करता है।
लोकजीवन जिसे साधारण अर्थ में नागर से पृथक ग्रामीण से समद्ध किया जाता है,में अपने अतीत की स्मृतियां वाचिक परम्परा के रूप में एक हद तक सुरक्षित रहती हैं।इस स्मृति कथा को लेखक उचित ही लोक-पुराण की संज्ञा देता है। ये स्मृतियां वहां की परम्परा,तीज-त्योहार,कथा-गीत में ध्वनित होती हैं। यहां तक कि स्थल नाम भी अपने अतीत के कुछ संकेत देते हैं।
राहुल जी इतिहास और लोकसंस्कृति के अध्येता हैं। वे अपने सरस गद्य के लिए जाने जाते हैं। इतिहास जैसे साक्ष्य नियंत्रित विषय पर भी वे रोचक ढंग से बात कर लेते हैं।ज़ाहिर है इसका कारण उनकी संवेदनात्मक दृष्टि है जो इतिहास में शुष्क तथ्यों की पड़ताल न कर जीवन संवेदना ढूंढती है।और यही दृष्टि उन्हें लोकजीवन और संस्कृति की तरफ खींच लेती है। कहना न होगा इससे इतिहास दृष्टि को बल ही मिलता है।
इतिहास की बहुत से टूटी कड़ियाँ लोक-स्मृति में छुपी हो सकती हैं, जरूरत है उनकी पड़ताल की। इधर इस तरह के अध्ययनों में काफी कमी दिखाई पड़ती है। यद्यपि शोध के नाम पर पहले के अध्ययनों की बेझिझक पुनरावृत्ति की बाढ़ है।
राहुल जी का ब्लॉग ‘सिंहावलोकन’ चर्चित रहा है। इसी नाम से उनकी पहली ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विवेचनात्मक कृति ‘सिंहावलोकन’ भी सराही गयी। प्रस्तुत कृति ‘छत्तीसगढ़ का लोक-पुराण’ में भी तथ्यात्मक जानकारी के साथ-साथ बातचीत शैली में सरस गद्य का प्रवाह है। संग्रहित कई आलेखों में व्यक्तिव्यंजक निंबन्ध की तरह लेखक का व्यक्तित्व झलक उठता है। मुझे इन्हें पढ़ते कई बार हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंधों की स्मृति हो आयी।
जैसा कि हमने कहा संग्रहित रचनाओं में जानकारी के साथ-साथ कहन का अपना निजी ढंग है।जानकारियां मुख्यतः छत्तीसगढ़ की इतिहास और संस्कृति से सम्बंधित है। लेखक ने इतिहास की घटनाओं को लोकस्मृति के सहारे ढूंढने का प्रयास किया है। ग्राम-नाम,नदी,तालाब,देवता-धामी, लोक कथा,तंत्र-मंत्र,व्यक्तिचित्र,पशु-पक्षी, कई पहलुओं से ग्रामीण जीवन के अन्तस्,उसके सांस्कृतिक इतिहास की पड़ताल की गई है।परिवेश मुख्यतः छत्तीसगढ़ का है और अधिकतर लेखक के अपने निजी अनुभव से सम्बद्ध है।
लेखक ने जहां कई मामलों में पूर्व अध्येताओं की चूक का संकेत किया है वहीं विनम्रता पूर्वक कई बिंदुओं पर अपनी अध्ययन ‘सीमाओं’ का भी जिक्र कर दिया है,जो हमारी समझ से सही दृष्टि है।इस तरह इस कृति में इतिहास,मानवशास्त्र,भाषा विज्ञान, लोक साहित्य और संस्कृति का रोचक मेल है जो पाठक को न केवल बांधे रखने में सक्षम है अपितु उसके समझ का परिष्कार भी करती है।
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कृति- छत्तीसगढ़ का लोक-पुराण
(मनोमय गांवों का बहुरूप)
लेखक-राहुल कुमार सिंह
प्रकाशक-राष्ट्रीय पुस्तक न्यास(एन. बी.टी.)
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●अजय चन्द्रवंशी,कवर्धा(छत्तीसगढ़)
मो.9893728320