बटोर के ये सारा आकाश
रख देना चाहती हूं तुम्हारी हथेलियां पर
इसके तारे इसका चांद इसके बादल इसका सूरज
भर देना चाहती हूं तुम्हारी आंखें उस चमक से
जो तुम्हारे चेहरे और होठों तक छलकने लगे
रख देना चाहती हूं इन नर्म सफेद
बादलों की तकिया तुम्हारे सिरहाने
उतारकर तुम्हारे चश्मे रख देना चाहती हूं
अधरों का आलिंगन उन पलकों पर
जो जाने कब से थकी हुई हैं
इन उंगलियों के पोरों से सहलाना चाहती हूं
धान की बालियों जैसे तुम्हारे बाल
वर्षों से थका तुम्हारा मैं
मेरे मैं की छुअन से सुलाना चाहती हूं
गहरी नींद, चैन की, नींद भर, चैन भर,
दिन भर, रात भर, मन भर, तन भर
और जब तुम जागो,
चाय की प्याली पर नेह का बोसा रखकर,
सजाकर खुशियों की तश्तरी में
रख देना चाहती हूं तुम्हारे सिरहाने साइड टेबल पर
उसकी आंच और नए सूरज की रोशनी
खुलते पर्दे, ठंडी हवाएं चाहती हूं
करें तुम्हारा स्वागत एक नए दिन के उजाले में
नई खुशियों की आमद में नई उमंग नए जोश के साथ
धुली धुली सुबह की तरह
नहाए फूलों से टपकती ओस की तरह
कुछ तुम्हारी तरह कुछ मेरी तरह।
© Annapurna Pawar Aahuti 🖋️