मधुर कुलश्रेष्ठ जी के उपन्यास आई मिस्ट्री मर्डर” की समीक्षा:
“आई मर्डर मिस्ट्री”
मधुर कुलश्रेष्ठ द्वारा लिखित यह जासूसी उपन्यास जब पढ़ने को मिला तब मुझे इस बात का गुमान तक न था कि किताब पढ़ने में मैं कॉलेज के दिनों की तरह बिल्कुल खो जाऊंगा । उस जमाने में जब मनोरंजन के दीगर साधन न होते थे तब किताबें पढ़ना एक बहुत आनंददायक शगल हुआ करता था। इब्ने सफी, वेद प्रकाश कंबोज ,ओमप्रकाश शर्मा और कर्नल रंजीत हिंदी के तथा जेम्स हेडली चेईस और अगाथा क्रिस्टी आदि उन दिनों पढ़े जाने वाले खास उपन्यास लेखक हुआ करते थे ।
अन्य विषयों के उपन्यासों में एक कथानक शुरू होता है और पात्र उसे आगे बढ़ाते चलते हैं । लेखक कभी-कभी अपनी सोची हुई बात भुलाकर पात्रों द्वारा रचे गए वातावरण में इतना खो जाता है कि उसे प्रयास पूर्वक अपनी मुख्यधारा में लौटना पड़ता है और कथानक आगे चलता जाता है । जासूसी उपन्यास जिसमें कोई घटना घटित होती है और उसकी वजह ढूंढने में लेखक को सभी छिपे हुए कारणों एवं पात्रों का उत्खनन करना होता है , वह भी इस तरह ताकि पाठक की उत्सुकता और जिज्ञासा प्रतिपल बनी रहे , रोचकता बनी रहे और जो घटनाक्रम घट रहा है उसके ताने-बाने में आए तथ्यों की प्रासंगिकता भी युक्ति युक्त हो । क्योंकि पाठक जब मनोयोग से पढता है तो उसके अपने अनुमान साथ चलते हैं और यदि उसके अपने अनुमानों के साथ लेखक का तादात्म्य स्थापित होता है तो पाठक को एक अलग तरह का यह सुख मिलता है कि उसके अनुमान कहानी के करीब पहुंचते हैं।
इसमें थ्रिल पैदा करने के लिए लेखक बड़ी ही चतुराई से कथानक को एक नया मोड़ देते हुए ऐसे व्यक्ति और ऐसे घटनाक्रम पर खत्म करता है जिसका अनुमान पाठक को नहीं है । वह चौंकता है और इस अनायास घटे घटनाक्रम तथा अचानक कर्ता-धर्ता के रूप में सामने आए व्यक्ति की आकस्मिकता का आनंद भी उसे प्राप्त होता है। जासूसी उपन्यास लिखने में सारे घटनाक्रम को पूर्व से संजो कर रखना, किस समय कौन सी घटना सामने आएगी और उसके भूतलक्षी और पश्चात भर्ती प्रभाव कथानक पर क्या पड़ेंगे , यह विभिन्न तरह का ताना-बाना शुरू से ही बुनकर रखना और उसे यथा विधि परोसते जाना , इस तरह के उपन्यासों में एक बहुत आवश्यक अंग है ।
मधुर कुलश्रेष्ठ जी उपन्यासकार एवम व्यंग्यकार है परंतु इस तरह का यह उनका पहला उपन्यास है । इस उपन्यास में उपरोक्त वर्णित उत्सुकता आरंभ से ही बनी रहती है । अपनी पुलिस विभाग की लंबी सेवा में मेरे समक्ष भी अनेक ऐसे मामले आए जिनमें अनुमानों और उपलब्ध हुए छोटे-छोटे सूत्रों को जोड़ते हुए अपराध की मूल वजह और अपराधी तथा उनके साथियों तक पहुंचने में सारा व्यवसायिक कौशल लगाना पड़ता था। कभी-कभी असफलता भी हाथ लगती थी । इस उपन्यास में इंस्पेक्टर नील की हत्या एक मिस्ट्री बनकर उभरती है और जितने भी प्रश्न किसी जिज्ञासु के मन में आ सकते हैं वह सारे ही प्रश्न लेखक ने बड़ी चतुराई से उपस्थित किए हैं । जिन जिन पर भी संदेह हो सकता है उन सभी अनुमानों को भी उपस्थित किया है । यहां तक की विभाग के आईजी को भी संदेह के घेरे में रखकर एक अनूठे कथानक की रचना की है ।
कई बार अपराधों की विवेचना के दौरान हमें लगता था कि काश इस तरह के जासूसी के डिवाइस होते तो उनका उपयोग कर बहुत सी गोपनीय सूचनाएं हासिल कर ली जाती और मिनटों में केस हल हो जाता । आश्चर्य की बात है कि लेखक ने ऐसे सारे डिवाइस एक विज्ञान के छात्र सैमुअल के जरिए इस उपन्यास में दिखाए हैं और उनका यथोचित उपयोग भी विस्तार से किया गया है। बैंक की सेवा में कार्यरत मधुर जी को पुलिस की कार्यप्रणाली, कानून की बुनियादी जरूरतों के साथ-साथ मुखबीर और अपराधियों के अंदर तक की चतुराई का आभास जिस तरह हुआ है यह प्रशंसनीय है । कथा में दो प्राइवेट जासूस और पुलिस की भीतरी खींचतान के अलावा उसकी सूझ बूझ को भी अच्छी तरह अंकित किया गया है । यद्यपि पढ़ते-पढ़ते उपन्यास में अपराधियों का पूर्वानुमान होने लगता है और अंत में वही लोग मूल अपराधी निकलते भी हैं परंतु अंत में घटना का मुख्य सूत्रधार एक अलग ही व्यक्ति निकलता है । उनके नाम भूमिका में उजागर करने से उपन्यास के भीतर का रोमांच खत्म होने का अंदेशा है अतः इस पर मौन रहना उचित है । उपन्यास पठनीय है, पाठक की चेतना को जगाए रखने में अंत तक सफल है, प्रभावपूर्ण है । श्री मधुर कुलश्रेष्ठ जी को इस उपन्यास के लेखन के लिए बहुत-बहुत बधाई ।
डॉ किशोर अग्रवाल, आईपीएस
से. नि. पुलिस उपमहानिरीक्षक छत्तीसगढ़,
मो. नं. 94252 12340