ग़ज़ल
दुनिया हसीन लगती है जिसके जमाल से,
कैसे निगाह फेर लूँ उसके ख़याल से ।
आलम था गर्दिशों का सियाही थी चार सू,
रौशन हुई है ज़ीस्त उसी के विसाल से।
हर लम्हा जिसकी जुस्तजू जिसके ख़याल हैं,
वाकिफ़ नहीं है सिर्फ़ वही मेरे हाल से।
मुमकिन है मुझसे हाथ छुड़ा भी लें वो मगर,
हो पाएंगे जुदा न वो ख़्वाबो ख़याल से।
दीवानगी का मुझसे ही आलम न पूछिए
मिलता सुकून दिल को भी उनके विसाल से।
अल्पना सुहासिनी