मिट्टी दिवस पर एक नवगीत
इक दिन हम सब लोग,
मिलेंगे मिट्टी में ।
लेकिन मिलकर हमीं,
खिलेंगे मिट्टी में ।।
मिट्टी है अनमोल,
इसे उर्वर रखना है ।
इसकी छाती पर गऊ का-
गोबर रखना है ।
हरे-भरे तब खेत,
हँसेंगे मिट्टी में ।।
मिट्टी यानी माँ यह प्यारी,
बंद करें दोहन ।
मृदा शुद्ध संरक्षित हो तो,
सुंदर हो जीवन।
अगर ध्यान न दिया,
धसेंगे मिट्टी में ।।
मनुज नहीं हर जीव-जंतु को,
यह अनुपम उपहार।
लेकिन माता झेल रही है,
नित्य प्रदूषण-मार ।
सुधरें वरना लोग,
गलेंगे मिट्टी में ।
एक दिन हम सब लोग,
मिलेंगे मिट्टी में।।
@ गिरीश पंकज