गीत
छोड़ बाबुल तुम्हें दूर कैसे रहें।
दूर -रहने का गम हम कैसे सहें।।
खूब बचपन में उछली व कूदी जहाँ।
खूब लोरी सुनाई है तुमने यहाँ ।
दूरी अपने ही घर की हम कैसे सहें।
दूर रहने———–
मेरी सखियाँ सहेली हैं रहती यहाँ।
झूला सँग में झूले हैं हमनें जहाँ ।
गीत कजरी के उन बिन कैसे कहें।
दूर रहने————-
दुःख का छाया न पड़ने पाया जहाँ।
सुख का आँचल माँ ने उढ़ाया यहाँ ।
माँ के आँचल बिना हम कैसे रहें।
दूर रहने————-
छोड़ बाबुल तुम्हें दूर कैसे रहें ।
दूर रहने का गम हम कैसे सहें।।
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डॉ0 कमलेश शुक्ला ‘कीर्ति ‘
कानपुर
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