April 11, 2025

अधूरेपन के बीच से चला जाऊँगा

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अधूरेपन के बीच से चला जाऊँगा
अपूर्ण कविता की तरह रह जाना चाहता हूँ उसकी संभावना में

मुरझाने से पहले गिर जाना चाहता हूँ

दस्तक दूँ
जबतक खुले दरवाज़ा
लौट जाऊं

पुकार जबतक पहुंचे
शांत हो जाए मेरी उद्विग्न आवाज़

शब्द के हिज्जे दुरुस्त करने को उठाऊं वाक्य
कि विराम उसे कर दे पूर्ण

जाती हुई पीठ के ओझल होने से पहले
अदृश्य हो जाना चाहता हूँ

सब कुछ सिमट जाने के बाद की धूल मुझसे नहीं उठती.
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@ अरुण देव

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