November 21, 2024

शरीर मंदिर नहीं है
कि धो धोकर इसे रखूँ पवित्र
अपरस में रखूँ कोई छू न सके मुझे

शरीर किसी विचारधारा की प्रयोगशाला भी नहीं
कि पालूँ हृदय में चूहे और कहूँ दुनिया से
देखो इतने चूहे खाकर चली मैं हज को

शरीर इतना निजी है कि इस पर
मंच से बात करना इसका अपमान करना है
इतना निजी है कि इसे किसी को भी दिखा देना
ऐसा है कि कोई दिखा दे किसी को भी सड़क पर
अपने मन का सबसे अंदरूनी कोना

मेरे शरीर पर न सरकार का न विचार का
न आधार कार्ड का न बीमा कंपनी का
न पिता का न प्रेमी का न पति का न पुत्र का
न सखी का न नबी का न ऋषि का न कवि का
किसी का अधिकार नहीं

शरीर के बारे में लिखना मेरे मन के बारे में
लिखने से ज़्यादा कठिन
क्योंकि मन गढ़ा गया है भाषा से
जबकि शरीर के बारे में लिखने के लिए
भाषा काम नहीं आती

लिखूँ अगर रक्त, हड्डी, त्वचा, खून, रज, रोम
तो है क्या वह शब्द शब्द शब्द भाषा भाषा भाषा

क्या तुम पाँच दिन किसी घाव की तरह रिसते
भग लिए घूमती औरत के बारे में लिख सकते हो
न जी न तुम चाहे औरत को कि आदमी
औरत के शरीर के बारे में केवल बक सकते हो
निरी बकवास

Jyoti G Sharma

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