यादों का बोझ लिए
इंतजार में पत्थरायी आँखें
छुए जाने की प्रतीक्षा में
दो व्याकुल अधखुले होंठ
उँगलियों के स्पर्श को आतुर
हथेलियों की सैकड़ों रेखाएँ
विरह की पराकाष्ठा पर है
सुनो! बसंत बीतने को है
तुम चले आओ किसी रात
जैसे अचानक बारिश आती है
रख जाओ मेरी पलकों पर
एक अंतहीन सुंदर ख्वाब
होंठों के मध्य सुर्ख़ होंठ
हथेलियों पर एक जन्म
अपनी आत्मा छोड़ जाओ
मेरे जिस्म में कुछ ऐसे
जैसे अटके हो बूँदें बारिश की
किसी बिजली की तार पर
काजल सिंह 'रूह'