नोहर होगे उन्हारी- सार छंद
भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।
चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।
पहली जम्मों गांव गांव मा, माते राहय खेती।
सरसो नाँचे तिवरा हाँसे, जेती देखन तेती।।
करे मसूर ह मुचमुच फुलके, बड़ निकले तरकारी।
भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।
चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।
पुरवा गाये राग फगुनवा, चना गहूँ लहराये।
मेड़ कुंदरा कागभगोड़ा, अड़बड़ मन ला भाये।
चना चोरइया गाय बेंदरा, खाय मार अउ गारी।
भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।
चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।
कोन सिधोवव खेत किसानी, मनखे मन पगलागे।
खेत बेच के खाय खवाये, शहर गाँव मा आगे।।
सड़क झडक दिस खेत खार ला, बनगे महल अटारी।
भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।
चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।
जीतेन्द्र वर्मा”खैरझिटिया”
बाल्को,कोरबा(छग)