छाया खेल
एक पंछी अभी-अभी
उड़ कर आया
ऐसी जगह बैठा
जहां एक मनुष्य की
छाया पड़ रही थी
मनुष्य जहां खड़ा था
उसने अपने सिर पर
तान रखा था छाता
जो अभी-अभी
आया था दरख्त तले
दरख़्त खड़ा था
पहाड़ की तराई में
जहां पड़ रही थी
पहाड़ की छाया
पहाड़ पर किसकी छाया?
– पहाड़ पर आकाश की छाया!
आकाश को भेद रहा सूरज
ये कौन समझ पाया !
– शुचि मिश्रा