दुर्ग के चार कवियों की महत्वपूर्ण कविताएं
: : ग़ज़ल ::
कर रहम सब को बचा मेरे खुदा ।
दूर कर दे ये बला मेरे खुदा।।
सह न पाऊंगा गमों का बोझ मैं।
हौसला मेरा बढ़ा मेरे खुदा।।
उड़ रहे हैं धूल जैसे सब यहां।
चल रही कैसी हवा मेरे खुदा।।
गर हुई हमसे खता तो बख्श दे।
दे न तू ऐसी सजा मेरे खुदा।।
इस सजा से मिल गया हमको सबक।
हम करें सबका भला मेरे खुदा।।
रोग लाईलाज है, कैसे बचें
है दुआ ही बस, दवा मेरे खुदा
ख़ौफ़, दर्द ओ गम का जो माहौल है
खुशनुमा इसको बना मेरे खुदा।।
है दुआ तुझसे तेरे “नारंग”की
दूर कर दे यह वबा मेरे खुदा
“आलोक नारंग” दुर्ग
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अभी भी वक्त है
तलाशो……!!
तलाशो…..!!
हमारे ही अंदर छुपा है थोड़ा सा कंस
थोड़ा सा कृष्ण
युद्ध करो और
विजयी हो…!
चलो महाभारत के
उस पार
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हमारे नागफनी
गालियां देकर आप ने सिखा दी
फूलों को
कांटों की भाषा
जिसकी फसल को काटेंगे
आपके निरुत्तर हाथ वक्त गुजर जाने के बाद व्याकरण को
समझते हुए
ठहरो….!!
फूलों को सीखने दो फूलों की भाषा
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आत्म दर्शन
जो समंदर में नहीं डूबा वो अपनी अंजुली में
डूब गया
होंठ खामोश है
शब्द चुप है
किसी ने कुछ नहीं कहा
फिर भी
सब कुछ समझ गया
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आईना
जब जब भी आईना कहना चाहता है
मुझसे मेरा सच
मैं बदल देता हूं बात करता हूं प्रतिवाद
आईने को रगड़ते हुए
विद्या गुप्ता दुर्ग
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पुस्तक
ग्यान के भंडार हे पुस्तक
मुठा मा संसार हे पुस्तक।
रेंगे बर रद्दा बतलाथे
बानी बर बइपार से पुस्तक।
धरम-करम अउ राजनीति के
गजब बारीक तार हे पुस्तक।
ग्यानी-ध्यानी, पंडित मन बर
गर के सुग्घर हार हे पुस्तक।
रिसि-मुनि अउ विग्यानी मन के
जगत बर उपहार हे पुस्तक।
दास कबीरा अउ तुलसी के
हमरे बर उपहार हे पुस्तक।
-बलदाऊ राम साहू
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मौत के बादल घने हैं
दिल के कमरे डर रहे हैं।
अब शिफाखाना में भी हां,
हुक्म पैसों के चले हैं।
मुल्क ख़तरों से घिरा है
आफिसर घर में घुसे हैं।
इस महामारी में भी धन
लूटने में सब लगेहैं।
सड़कों पर जो लोग रहते,
मास्क के दम ही बचे हैं।
( डॉ संजय दानी )