आज के कवि : मुझे रोको मत
(1)
कवि होता है
कितना लाचार,मायूस और
निरीह प्राणी!
उसे
गढ़नी होती है कविता
उन्हीं बेजान शब्दों से
जिनसे लोग
चीखते- चिल्लाते
गदहे को बाप बनाते
और
तलवे सहलाते हैं|
(2)
बंधु
यह समय के अंकन का
समय नहीं है!
आओ
कुछ नया करें
वक्त को
सांचे में ढाल- ढाल
ठोस ईंधन तैयार करें
जिससे वक्त जरूरत
सुलगाई जा सके
भट्ठी और
सूरज के समक्ष
जुगनुओं को
खड़ा किया जा सके|
(3)
मैं सिर्फ
‘वि’ टंकित करता हूं और
स्वमेव झिलमिलाता है-
“विनम्र श्रद्धांजलि”
न जाने कितनी बार लिखा है
इन बेदर्द ऊंगलियों से कि-
हृदयहीन गेजेट भी
स्वयम् छापने लगा है|
(4)
अब
शब्दों को पढ़ने मात्र से
काम नहीं चलेगा
कुछ ऐसी मशक्कत
होनी चाहिए
कि पाठक
इंद्रियों से महसूसे
काले समय की
स्याह
लिखावट को|
(सु)प्रभात
डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय
केन्द्रीय विद्यालय बीएमवाय चरोदा भिलाई
9826561819