अफ़सोस
करोना के हमले ये हर सू तबाही
ये दुनिया के दामन पे छायी सियाही
ज़रा जाके लाशों से मांगो गवाही
जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?
जहाँ भर में फैले ये लाशों के मलबे
ये माओं की लाशों पे बच्चे बिलखते
जिन्हे छोड़कर जा चुके सारे रिश्ते
जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?
थी रोटी ज़रुरत पे बम ही बनाये
मिसाइल बनाकर करोड़ों कमाए
ये बस्ती उजाड़ी सभी घर जलाये
जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?
ज़रा जाके पूछो तो अब अमरीका से
वो निपटेगा कैसे भला इस वबा से
मिसाइल से मारे कि मारे दवा से
जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?
वबा –मुसीबत
दोस्तो मैंने बेहद ग़ुस्से और क्षोभ में ये फ़िलबदीह नज़्म लिखी है। इसे बाद में refine करूँगा।
अजय सहाब