December 3, 2024
अजय सहाब

करोना के हमले ये हर सू तबाही
ये दुनिया के दामन पे छायी सियाही
ज़रा जाके लाशों से मांगो गवाही
जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?

जहाँ भर में फैले ये लाशों के मलबे
ये माओं की लाशों पे बच्चे बिलखते
जिन्हे छोड़कर जा चुके सारे रिश्ते

जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?

थी रोटी ज़रुरत पे बम ही बनाये
मिसाइल बनाकर करोड़ों कमाए
ये बस्ती उजाड़ी सभी घर जलाये

जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?

ज़रा जाके पूछो तो अब अमरीका से
वो निपटेगा कैसे भला इस वबा से
मिसाइल से मारे कि मारे दवा से

जिन्हें नाज़ था फ़ौज पर वो कहाँ हैं ?
वबा –मुसीबत

दोस्तो मैंने बेहद ग़ुस्से और क्षोभ में ये फ़िलबदीह नज़्म लिखी है। इसे बाद में refine करूँगा।

अजय सहाब

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