पद की गरिमा
राजा ने एक भाषण दिया। कुछ ज्यादा ही जोश में दिया। भाषण पर बवाल मच गया। वैसे उसके हर भाषण से हलचल होती थी, मगर इस वाले भाषण ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।
पूरे राज्य में राजा की उसके पीठ पीछे थू थू होने लगी। निश्चित ही राजा का भाषण निंदनीय था। राज ने भाषण में बहुत ही ओछी बातें कहीं थीं। उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है। मगर राजा के चापलूस ‘आप ने माहौल गरमा दिया महाराज!’ कहकर उसे चने के झाड़ पर चढ़ाये जा रहे थे।
ऐसे में राज पुरोहित ने सोचा क्यों न राजा को सच्चाई से अवगत कराया जाए। पूरे राज्य में एक राज पुरोहित ही थे, जो राजा से कुछ कह सकते थे।
राज पुरोहित राजा से मिलने जा पहुंचे। शाही तालाब के पास उनकी भेंट रखी गई । राज पुरोहित ने देखा कि राजा केंचुए को कांटे में फंसा रहा है। यह समय राजा के क्रीड़ा का समय था।
शुरुवाती अभिवादन के बाद राज पुरोहित ने अपने स्तर से और अपने स्तर की बात की।
‘पद की गरिमा से आप क्या समझते हैं राजन!’ राज पुरोहित ने सांस साधकर पूछा।
राजा ने कुछ पल राज पुरोहित को देखा। राज पुरोहित की सांसें रुक-सी गईं।
‘जब तक पद रहता है, तब तक गर्मी रहती है।’ राजा ने पूरे ठसक के साथ उत्तर दिया।
राजा का जवाब सुनकर राज पुरोहित अंदर ही अंदर हिले, मगर अपनी जमीन न छोड़ी।
वे हिम्मत जोड़कर आगे बोले,’ मैं आप से क्या पूछ रहा हूं और आप क्या उत्तर दे रहे हैं राजन!’
‘मैं आपके अनुचित प्रश्न का उचित उत्तर दे रहा हूं गुरु जी!’ राजा दृढ़ स्वर में बोला।
‘आपने तो मुझे निरुत्तर कर दिया राजन!’ राज पुरोहित का स्वर कांपा।
राजा मुस्कुराया। तालाब में कांटा डालते हुए बोला,अब देखिएगा! इस तालाब की मछलियां फिर फंस जाएंगी! जानते हैं क्यों!’
‘केंचुआ!!’
न चाहते हुए राज पुरोहित के मुंह से निकल ही गया। उत्तर सुनते ही राजा ठठाकर हंसा। राज पुरोहित के हाथ स्वतः जुड़ गए।
अगले दिन राज पुरोहित को पता चला कि राजा ने एक नई योजना की घोषणा की है जिसमें नव व्याहता को राज्य की ओर से एक मंगल सूत्र दिए जाने की सूचना थी।
अनूप मणि त्रिपाठी