असली एंकर, नमक का दारोगा-पार्ट टू
आलोक पुराणिक
बहुत बड़े कहानीकार, उपन्यास लेखक प्रेमचंद की एक क्लासिक कहानी है-नमक का दारोगा, इसमें एक ईमानदार दारोगा वंशीधर की कहानी है, जो ईमानदारी से नौकरी करते हुए नौकरी से हाथ धो बैठता है। फिर आखिर में उसे उस कारोबारी अलोपीदीन से नौकरी का आफर मिलता है, जिसके खिलाफ वह कड़े कदम उठा रहा था। कहानी का अंत इसी बिंदु पर होता है कि ईमानदार दारोगा को उस भ्रष्ट कारोबारी के यहां नौकरी मिल जाती है, जिसके खिलाफ कदम उठाने के लिए उसकी सरकारी नौकरी गयी थी। आगे की कहानी अब के टाइम के हिसाब से कुछ यूं हो सकती है-
वंशीधर महंगी कार में जाते थे, जो अलोपीदीन ने उन्हे दी थी।
वंशीधर की आत्मा एक दिन जागकर उनसे बोली-रे वंशीधर, तू इसी करप्ट कारोबारी के खिलाफ एक्शन लेने के चक्कर में, ईमानदारी दिखाने के चक्कर में नौकरी से गया। अब उसी अलोपीदीन की नौकरी कर रहा है तू। क्या कर रहा है। वंशीधर की आत्मा जग गयी। आत्मा बहुत डेंजरस होती है, एक बार जग जाये, तो भौत परेशान करती है। वंशीधर को यह बात सताने लगी कि हाय तू कर क्या कर रहा है।
वंशीधर एक सभा में बैठे हुए थे कि एक कंपनी के एक अफसर ने उनसे संपर्क किया और पूछा कि आप वही वंशीधर हैं, जिनकी ईमानदारी की चर्चा एक वक्त बहुत हुआ करती थी।
वंशीधर ने कहा-हां मैं वहीं ईमानदार दारोगा हूं, पर अब उसी भ्रष्ट कारोबारी का नौकर का हूं, जिसके खिलाफ एक्शन लिया था मैंने।
कंपनी का अफसर बोला-आप एक काम करें-एक एनजीओ खोल लें-ईमान की दुकान- यानी यह एनजीओ ईमान का प्रचार प्रसार करेंगा। आपको हम अपना ब्रांड एंबेसडर बना देंगे, आप ईमान के बारे में प्रचार प्रसार करेंगे। हम आपको अच्छी खासी रकम देंगे।
वंशीधऱ ने नौकरी के साथ ईमान की दुकान शुरु कर दी। वह लेक्चर देने के लिए जाने लगे।
लेक्चर का काम मिलता, तो लेक्चर का काम देनेवाला कहता है कि आपको एक लाख रुपये देंगे, पर जी हमारा पच्चीस परसेंट कमीशन आप दे दीजिये, पहले।
वंशीधर ने कहा कि यह क्या बात है ईमान के काम में पहले ही बेईमानी हो रही है।
वंशीधर चकराये और उन्होने आगे तफतीश की तो पता चला कि किसी कंपनी की रुचि ईमान को चलाने में नहीं है। वो तो सरकार का रुल है कि हर कंपनी को अपने मुनाफे का एक हिस्सा कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबलटी यानी सामाजिक जिम्मेदारी वाले कामों में खर्च करने होंगे। यानी सत्य ईमान के प्रवचन वगैरह को भी सामाजिक जिम्मेदारी वालों में गिन लिया गया था।
एक दिन एक वरिष्ठ ईमानदार टकराया वंशीधर से तो वंशीधर ने पूछा-हम इतने लेक्चर दे रहे हैं ईमानदारी के। एक पैसे का ईमान भी किसी में ना आ रहा है। देखो उस नेता ने अपनी कंपनी में मुझसे ईमान पर लेक्चर करवाया था, और आज वह उस रैली में झूठ पर झूठ बोले जा रहा था। कर क्या कर रहे हैं हम।
वरिष्ठ ईमानदार ने बताया-बेट्टे हमारा सिर्फ सत्य ईमान पर लेक्चर देना है, ईमान वगैरह सच में आ गया, तो हमारी दुकान बंद हो लेगी। वैसे तुम्हारे ईमान ने तुम्हे दिया क्या, एक भ्रष्ट कारोबारी के यहां नौकरी। इससे तो बेहतर यही है कि तुम यहां प्रवचन खेंचकर कमा लो।
वंशीधर को बात समझ में आ गयी, ईमान सत्य सिर्फ प्रवचन में सही लगते हैं। सच में इनकी कोई डिमांड ना है।
आर के लक्ष्मण
इस्तीफा इतनी सी बात पर,भ्रष्टाचार, कवर अप, चोरी चकारी,इतनी सी बात पर कौन इस्तीफा देता है जी।