फलक़ पर मुस्कुराती …
फलक़ पर मुस्कुराती बिजलियाँ कुछ और कहती हैं
ज़मी पर लड़खड़ाती कश्तियाँ कुछ और कहती हैं
बया करते हैं दरवाज़े कहानी दूसरी लेकिन
गली की सिम्त खुलती खिड़कियाँ कुछ और कहती हैं
पढ़ाई के तक़ाज़ों से नहीं हम बेखबर लेकिन
ये अल्हल उम्र की तो मस्तियाँ कुछ और कहती हैं
मुझे मालूम है अब तक उसे मुझसे मुहब्बत है
भले उसकी ज़ुबां की तल्खियां कुछ और कहती हैं
वो कहता है भुला बैठा हूँ सरिता को ज़माने से
मुसलसल आ रही पर हिचकियाँ कुछ और कहती हैं
सरिता जैन