संघर्षपथी जनकवि छलाह बाबा यात्री-नागार्जुन
सोनी चौधरी
चेतना मानव जीवनक प्राण वायु थिक। अन्हार आ प्रकाश मनुष्यक चेतन मस्तिष्कमे एक संगहि रहैत अछि। मानवमे चेतना जागृत रहला सँ अन्हार विलुप्त रहैछ। मुट्ठी बान्हि जीवन पथ पर ठाढ़ होयब, जीवन संघर्षमे डेग बढ़ा कऽ चलब चुनौती होइछ। मुदा दृढ़ संकल्प लऽ बढ़ैत डेग विशाल पहाड़, महोदधिकें, सघन वन प्रान्तक विशालसँ विशाल वट वृक्षकें ललकारि छक्का छोड़़यबामे समर्थ होइछ आ विजेताक भाँति चरम लक्ष्यके प्राप्त करैछ।
“बाल न बाँका कर सकी, शासन की बन्दूक ।”
मैथिलीक यात्री, भारतीय भाषा-साहित्यक यायावर यात्री-नागार्जुनक जीवन परिक्रमाक अवलोकन संग विपुल साहित्यिक कृति जे ओ दऽ कऽ गेलाह, ताहि पर चर्चा-परिचर्या, आलोचन-प्रत्यालोचनसँ हिनक जीवन यात्राक अवदान कें गुनला सँ बहुत किछु सीखब संभव अछि । कारण यात्री एकहि संग साम्यवादी, जनवादी, आ की की ने छलाह। मुदा जे छलाह से एक मुस्त खसल आमजनताक छलाह । आमजनता हिनक गुरुकुल छल। एक बेर यात्री स्वयं कहने रहथि जे “हमरा लगैए जे हमर गुरुकुल आम जनता अछि। ओकरे सँ हम हँसब, कानब, गायब, तुनकव, खिसियायब लैत छी। वर्तमान परिवेश केर काल्पनिकतामे आइ ओ दम कहाँ जे यात्रीजीक यथार्थमे अछि। तें एहि शून्यकें भरबाक लेल हुनक कृत्ति पर विशेष बहसक अपेक्षा अछि। हिनक कोनो रचना मीलक पाथर सदृश अछि। जाहि मातृभूमि कें अन्तिमप्रणाम कऽ बहरेला पुनः घुमि मातृभूमिक आँचरमे चिर शान्ति पौलनि । हिनक विशेषता एहू लऽ कऽ अछि जे हिनक कोनो भाषाक कृति केँ उठाउ, स्पष्ट रूपें ओहिमे मिथिला-मैथिलीक छाप पायब।
यात्रीजी सरल चित्तक सोझ लोक छलाह, जेहने भीतर तेहने बाहर । हुनक व्यक्तित्वक सर्वाधिक आकर्षक तत्व हुनक स्पष्टवादिता छल । हुनक व्यक्तित्व अलग-अलग कर्मक्षेत्रमे अलग-अलग ऐतिहासिक व्यक्तित्वक स्मरण करबैछ । भगवान बुद्ध जँ अपना युगक पीड़ित मानवताक हितार्थ संघर्ष केलनि। तऽ बैद्यनाथ मिश्र हुनके शिक्षा कें आत्मसात कऽ नागार्जुन बनलाह आ भगवान बुद्धक ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ आदर्श वचन कें अपन रचनाक माध्यमसँ जन-जन धरि प्रसारित करबाक बीड़ापान उठौलनि । ओ अपन मातृभाषा मैथिलीमे विद्यापति ओ चन्दा झाक क्रमकें आगू बढ़ौलनि । वस्तुतः मैथिली कविता केर आधुनिकीकरण करबाक बहुतांश श्रेय यात्रियेजीके छनि । हुनक ‘यात्री’ उपनाम कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोरक रचल पद्यांश ‘युग- युग धावति यात्री’ सँ उत्प्रेरित अछि। विदेहक भूमिमे रहबाक कारण हुनक आरम्भिक कविता ‘वैदेह’ उपनामसँ प्रकाशित होइत छलनि । ओ कतहु-कतहु अपना कें ठक्कन मिसिर सेहो कहलनि अछि। कहबाक तात्पर्य जे बैद्यनाथ, ठक्कन मिसिर, वैदेह, नागार्जुन आ यात्री एकहि बहुआयामी व्यक्तिक नाम अछि। कहल जाइछ जे साल 1941 मे हिन्दीक लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार स्व० रामवृक्ष बेनीपुरी जीक कहलासँ बैद्यनाथ मिश्र हिन्दीमे ‘नागार्जुन’ आ मैथिलीमे ‘यात्री’ नामसँ अलग-अलग अपन रचना प्रकाशित करय लगलाह।
के नहि जनैत अछि जे कबीर जकाँ यात्रीजी घुमक्कड़ी प्रवृत्तिक छलाह। जीवनभरि अपन झोरी लऽ कऽ यायावरक जीवन बितौलनि । हुनक अनेक ठेकान स्थल छल, असंख्य चाहनिहार छलनि। जीवनभरि ओ ओकरहि सभक परिधिमे बेसी घूमैत-फिरैत रहलाह। जतहि जाथि ओही ठामक लोकवेदसँ घुलिमिलि जाथि । कोनो विचारधारा, जाहिमे जनताक पीड़ा श्रुत होइन, ओकरा हृदयंगम कऽ लैत छलाह। ओ कहियो बंगाल तँ कहियो वाराणसी, कहियो इलाहाबाद तँ कहियो दिल्ली यानी भारतक कोन-कोनमे घुमैत-फिरैत रहलाह। ओ स्वामी सहजानन्द सरस्वतीक किसान आन्दोलनसँ लोकनायक जयप्रकाश नारायणक सम्पूर्ण क्रान्ति धरि सभमे सक्रिय सहभागी रहलाह। एतदर्थ ओ अनेक बेर कारादण्ड सेहो भोगलनि । कहबाक अभिप्राय जे यायावारी जीवन-शैली बाबा यात्री केर स्वभाव छलनि। यात्रीजीक रचना संसार संघर्षशील जीवनक भाव भरल शब्दचित्र अछि, जाहिमे हुनक सद्यः भोगल-देखल यथार्थ स्वाभाविक रूप सँ अभिव्यक्त भेल अछि ।
एहिमे दू मत नहि जे यात्रीजी सुच्चा साहित्यकार छलाह। ओ मर्क्सवादी होइतहु ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ केर प्रवल समर्थक छलाह। हुनक साहित्यिक व्यक्तित्व बहुमुखी छल। ओ साहित्यक तमाम विधा- कविता, उपन्यास, कथा आदिकें अनवरत सम्पुष्ट आ सम्वर्द्धन केलनि । ओ गद्य-पद्य दुनू माध्यम सँ समान रूपमे लिखलनि । हुनक कवितामे एक दिस संस्कृत काव्यक आनन्द उपलब्ध होइछ तँ दोसर दिस आम जीवनक दयनीय स्थितिक दृश्य दृष्टिगोचर होइछ । ओ अपन विभिन्न रचनामे आम जीवनक जे चित्रण केलनि अछि, वास्तवमे ओ हुनक भोगल यथार्थ अछि । इएह सुच्चा साहित्यकारक परिभाषा अछि।
एहि क्रममे 87 वर्षक अवस्थामे 5 नवम्बर 1998 कें एहि धराधामसँ साकेतक हेतु महाप्रयाण केलनि। आब हम सब भले यात्रीजीक नश्वर कायाक दर्शन मात्र चित्र रूपमे करबा लेल बेबस छी, मुदा हुनक कीर्तिकाया अजर-अमर छनि।
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