पानी चुप है
दुनिया भर में आग लगी है,
पानी चुप है।
मुँह पर पट्टी बाँधे हैं
ये सारी झीलें
झरनों के हाथों में
ठुकी हुई हैं कीलें
नदियाँ चुप हैं,
बादल-सा सैलानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।
जिसको कोहरा समझा
थी बारूदी आँधी
सर्द हवा ने भी
अगनी की गठरी बाँधी
सावन चुप है,
वर्षा की पटरानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।
बैठे हैं सब ताल-तलइयाँ
आँखें मूँदें
सूख गईं आँखों में भी
आँसू की बूँदें
और कहें क्या
सागर-सा भी दानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।
सारे जग में आग लगी है
जाने कब की
ऊँच-नीच की
पूरब-पश्चिम की, मज़हब की
फिर भी हर विज्ञानी
ज्ञानी-ध्यानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।
कुंवर बेचैन