नवगीत

खोज रहे जन
मिले कहीं से,
रोटी दो जून।
रहे न खाली
हाथ एक भी,
सबको हो काम।
घर की रौनक
बनकर लौटे,
लौटे जब शाम।
करें जतन ये
सबके हिस्से,
सुख आये दून….
कड़क धूप में
तन जलता है,
औ लगती प्यास।
धरी की धरी
रह जाती है,
मन की हर आस।
तकलीफों से मिलते
लेकिन
लकड़ी सॅंग नून….
तार-तार हैं
सारे रिश्ते,
हृदय लहुलुहान।
तू-तू-मैं-मैं
बात-बात पर,
कर रहे सुजान।
घर-ऑंगन
लगते हैं जैसे
रोटी बिन सून….
००००
पोखन लाल जायसवाल