हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ
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कविता / डॉ. वागीश सारस्वत
हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ
तुम भी बखूबी जानती हो ये बात
जान लेती हो तुम सब कुछ हमेशा
बिना कुछ कहे
पर स्वीकार नहीं करती कभी
मैं डरता हूँ जिस बात से
वो ही बात ठीक सामने आकर खड़ी हो जाती है हमेशा
हाँ , डरता हूँ कि
डरना जरूरी है
डरता हूँ कि तुम जरूरी हो मेरे लिए
हाँ, तुमसे ही बना है अस्तित्व मेरा
तुम से ही सीखा है मुस्कराना
गीत गाना
तुम हो तो झूमने लगता है आसमान
गाने लगते हैं बादल बरसाती राग
मदमस्त हो जाती हैं हवाएँ
चहकने लगती हैं लहरें सागर की
तुम हो तो पत्ते भी टहनियों के साथ करने लगते हैं रासलीला
तुम हो तो बनता है सतरंगी इंद्रधनुष खुशियों का
तुम्हारे बिना उदास हो जाते हैं पत्ते
टहनियां भी करने लगती हैं विधवा विलाप
हवाएँ हो जाती हैं उदास
लहरें भी लौटने लगती हैं सागर की गोद में छिपाने के लिए अपना सिर
तुम्हारे बिना रोने लगता है आसमान
तुम जानती हो सब कुछ बिना कुछ कहे
फिर भी खामोश रहती हो तुम
हाँ,सिर्फ तुम जानती हो
कि कितना मुश्किल होता है छिपाना
आसान होता है कहना
मैंने अपना ली है आसान राह
और कह दिया है तुमसे
हाँ,मैं तुमसे प्यार करता हूँ।।