गीतिका
अंबर पथ से आती वर्षा।
धरा हृदय सहलाती वर्षा।
छम-छम बूँदें नाच रहीं हैं,
सबका मन बहलाती वर्षा।
घनन- घनन घन शोर मचाये,
संग पवन इतराती वर्षा।
ताल- तलैया मुग्ध हो गए,
मधुमय गीत सुनाती वर्षा।
कहीं रुलाती बरस- बरसकर,
और कहीं रुक जाती वर्षा।
तोड़ -तोड़कर तटबंधों को,
सागर में मिल जाती वर्षा।
कभी रूठकर जलद पवन से
खड़ी दूर मुस्काती वर्षा।
कहीं आपदा के किस्से हैं,
कहीं खूब हर्षाती वर्षा।
शैल शिखर के ऊपर गिरती,
मरुथल को महकाती वर्षा।
हरे रंग की चूनर लेकर,
सावन भादो आती वर्षा।
खूब करें श्रृंगार धरा की,
नूतन रूप सजाती वर्षा।
नवनीत कमल
जगदलपुर छत्तीसगढ़
(चित्र साभार गूगल से)