November 21, 2024

गुरुद्वारा श्री पत्थर साहिब

0

संदर्भ लेह-लद्दाख प्रवास

हमने यहाँ मौन आध्यात्मिकता को अपने अंतर्मन में उतरते अनुभव किया। मेरे साथ चल रहे मित्र गिरीश पंकज पर गुरुद्वारे के अंदर की शांति और पवित्रता का ऐसा असर पड़ा कि उनकी आँखों में आँसू आ गए।

लेह-लद्दाख प्रवास के दूसरे दिन हमने इस गुरुद्वारे में गुरू ग्रंथ साहिब और पत्थर साहिब के आगे मत्था टेका। कड़ाह प्रसाद लिया और लंगर हॉल में श्रद्धालुओं के साथ बैठकर स्वादिष्ट खीर छकी। तत्पश्चात अहाते में ही सूखी बूंदी के साथ गाढ़े दूध से बनी चाय पी। यह सबकुछ हरेक व्यक्ति के लिए तीनों वक़्त उपलब्ध रहता है।

लेह से 25 किमी दूर यह गुरुद्वारा बहुत ही सुंदर है और इसे सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरू गुरू नानक देव जी की स्मृति में बनाया गया है। गुरू नानक देव जी अपनी दूसरी यात्रा के दौरान जम्मू-कश्मीर और लद्दाख आए थे। गुरूजी जिस जगह भी ठहरे, वहां उनका गुरुद्वारा बन गया।

गुरुद्वारा पत्थर साहिब इस क्षेत्र की आस्था का केन्द्र है। यहां हर साल बड़ी संख्या में हर धर्म से जुड़े श्रद्धालु पहुंचते हैं। भारतीय सेना के जवान भी नियमित रूप से गुरुद्वारा पत्थर साहिब में आते हैं। इस गुरुद्वारे का निर्माण भारतीय सेना ने करवाया है।

जनश्रुति……..गुरुद्वारे का इतिहास
———————–
मान्यता है कि 1517 ईस्वी में गुरू नानक देव सुमेर पर्वत पर अपना उपदेश देने के बाद नेपाल, सिक्किम, तिब्बत होते हुए लेह पहुंचे थे। लेह की पहाड़ी पर उन्हें लोगों ने एक राक्षस के बारे में बताया, जो लोगों को प्रताड़ित करता था। लोगों की बात सुनकर गुरू नानक देव ने नदी के किनारे आसन लगाया। यह देख राक्षस क्रोधित हो गया और गुरू नानक देव को मारने की योजना बनाने लगा।

एक दिन जब गुरूजी भगवान का ध्यान कर रहे थे, राक्षस ने उनकी ओर एक बड़ा पत्थर लुढ़का दिया। जैसे ही पत्थर ने गुरूजी को स्पर्श किया, मोम जैसा बन गया और गुरूजी के शरीर की आकृति पत्थर पर अंकित हो गई।

राक्षस ने पहाड़ से उतरकर जब यह दृश्य देखा तो वह हैरान रह गया। फिर उसने गुस्से में आकर अपना पैर जोर से पत्थर पर मारा, लेकिन उसका पैर ही पत्थर में धंस गया। इसके बाद राक्षस को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह गुरू नानक देव जी के चरणों में गिर गया।

राक्षस ने जो पत्थर गुरूजी पर फेंका था, वह आज भी यहां मौजूद है। पत्थर पर गुरुनानक देव जी के शरीर की आकृति भी मौजूद हैं। फ़िलहाल गुरुद्वारा पत्थर साहिब की देखरेख का जिम्मा भारतीय सेना के पास है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *