मोड़ ऐसा भी मोहब्बत…
मोड़ ऐसा भी मोहब्बत में कभी आएगा
दिल में रहता है जो वो दिल से उतर जाएगा
यूँ तो हर ज़ख़्म मिरा सूख चुका है लेकिन
याद के अब्र जो बरसे तो उभर आएगा
साथ रह जाएँगे यादों के नुकीले काँटे
मौसम-ए-वस्ल तो लम्हों में गुज़र जाएगा
खिल कभी पाएगी क्या दिल की कली दोबारा
क्या ये सहरा कभी गुलशन में बदल पाएगा
हम हमेशा की तरह उस का यक़ीं कर लेंगे
वो हमेशा की तरह हम से मुकर जाएगा
~सपना जैन