संगीत साधक मुकेश गर्ग
जब हम मुकेश की चर्चा करते हैं तो एक ऐसे प्रखर व्यक्तित्व की झांकी हमारे सामने आती है जो संगीत साहित्य दोनों के मध्य में तर्क का प्राणी है। किसी भी विषय पर चर्चा करते हुए मैंने यह अनुभव किया है कि उसके तर्कों के सामने हार जाना ही बेहतर है क्योंकि आपने यदि अपने तर्क प्रस्तुत किए और उसके तर्क सामने आ गए तो उन तर्कों का तर्कसंगत उत्तर देना बहुत मुश्किल हो जाता है। उसकी युवावस्था से ही मैं उसके इन तर्कों का सामना करता रहा हूं और अंततः हारता रहा हूं।
बचपन से ही संगीत के प्रति झुकाव, तबला सितार का शिक्षण और फिर उसके बाद वायलिन की मधुर ध्वनि की गुंजार मिलकर मुकेश का निर्माण करते है। साहित्य का विद्यार्थी जब संगीत कला की ओर जाता है तो साहित्य और संगीत का जो अनुपम मिलन होता है वह अद्वितीय होता है और यह मिलन मुकेश के माध्यम से हमने प्रत्यक्ष देखा है। मुकेश की क्षमताएं अपार हैं यदि मुकेश ने अपनी उन क्षमताओं का परिपूर्ण प्रयोग किया होता तो आज संगीत आलोचना के क्षेत्र में वह सबसे ऊपर चमकता हुआ दिखाई देता यद्यपि आज भी उसके बराबर मुझे कोई संगीत समालोचना का व्यक्ति दिखाई नहीं देता है। सबसे महत्वपूर्ण गुण जो अद्भुत भी है और चमत्कारी भी वह है कानों से सुनकर किसी भी गाने स्वरलिपि लिख देना और उसमें संगीत ताल वाद्य के संदर्भ में आई हुई बारीक से बारीक बात को प्रकट करना। मुकेश ने दिल्ली विश्वविद्यालय के अलीपुर स्थित श्रद्धानंद कॉलेज से अपने शिक्षण आरंभ किया और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में उपाचार्य का पद प्राप्त किया। उसके चाहने वाले और प्रशंसक शिष्यों की एक लंबी कतार है जो निरंतर उसके चारों ओर मंडराते रहे हैं और वह भी बड़ी सहृदयता से उनके प्रश्नों का समाधान करता रहा है। इस समाधान में वह यह भी भूल जाता कि उसे अपनी कुछ पुस्तकों का स्वरूप निर्धारित करना है। उसे लगता है कि सबसे पहले मेरे शिष्य हैं जो मुझसे कुछ प्राप्त करने के लिए आए हैं। लेकिन मुझे लगता है कि इसके साथ-साथ कुछ समय उसे अपनी पुस्तकों के लेखन को भी देना चाहिए था। आज तक मुकेश ने संगीत के संबंध में सैकड़ों लेख लिखे हैं , संगीत के बड़े से बड़े कार्यक्रमों की समीक्षा की है, बड़े-बड़े संगीतकारों के साक्षात्कार लिए हैं। ये सब अलग-अलग पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। विभिन्न संगोष्ठियों में उसने सैकड़ों भाषण दिए हैं, संगीत के सौंदर्यशास्त्र को लेकर उसकी दृष्टि बहुत व्यापक है, रीतिकालीन साहित्य को उसने बड़ी भव्यता के साथ व्याख्यायित किया है। साहित्य के स्त्रीवादी चिंतन का वह प्रवक्ता है। उसकी अस्वस्थता के समय उसकी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन हिंदी साहित्य निकेतन की ओर से किया जा रहा है। इन पुस्तकों के माध्यम से संगीत के प्रति उसकी आस्था और शोध दृष्टि का संज्ञान पाठकों को अवश्य ही होगा। संगीत के युवा कलाकारों को मंच प्रदान करने के लिए मुकेश ने संगीत संकल्प नामक संस्था की संकल्पना की। देश एवं विदेश में उसकी सैकड़ो शाखाएं आज कार्यरत हैं जिनके माध्यम से संगीत के युवा कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और साथ ही देश के सिद्ध और प्रसिद्ध संगीतकारों को सुनने का भी उन्हें शुभ अवसर प्राप्त होता है। मुकेश आकाशवाणी के म्यूजिक ऑडिशन बोर्ड के वर्षों तक सदस्य रहे हैं। दूरदर्शन तथा आकाशवाणी पर उनके साक्षात्कार वार्ताएं फीचर आदि 1980 से ही निरंतर प्रसारित किए जाते रहे हैं। वे कालिदास सम्मान, तानसेन सम्मान और कुमार गंधर्व सम्मान के निर्णायक मंडलों के भी वर्षों तक सदस्य रहे। उन्होंने फीचर फिल्म, टीवी फिल्म और कई दूरदर्शन धारावाहिकों में संगीत का निर्देशन किया। भारत सरकार द्वारा आईसीसीआर के माध्यम से हिंदी चेयर की स्थापना के लिए अज़रबैजान भेजे जाने पर प्रोफेसर और विभाग अध्यक्ष के रूप में 2010 से 2012 तक हिंदी का शिक्षण किया। मुकेश को राष्ट्रीय स्तर के अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया है इसकी सूची काफी लंबी है।
डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल
7838090732